SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates 卐 卐 बोधपाहुड --8- दोहा देव जिनेश्वर सर्वगुरु, बंदु मन-वच - काय। जा प्रसाद भवि बोध ले, पालैं जीव निकाय ।। १ ।। इसप्रकार मंगलाचरणके द्वारा श्री कुन्दकुन्द आचार्यकृत प्राकृत गाथाबद्ध ‘बोधपाहुड' की देश भाषामय वचनिकाका हिन्दी भाषानुवाद लिखते हैं, पहिले आचार्य ग्रन्थ करने की मंगलपूर्वक प्रतिज्ञा करते हैं:-- बहसत्थअत्थजाणे संजमसम्मत्तसुद्धतवचरणे । बंदित्ता आयरिए कसायमलवज्जिदे सुद्धे ॥ १ ॥ 新 卐 सयलजणबोहणत्थं जिणमग्गे जिणवरेहि जह भणियं । वोच्छामि समासेण 'छक्काचसुहंकरं सुणह ।। २ ।। बहुशास्त्रार्थज्ञापकान् संयमसम्यक्त्वशुद्धतपश्चरणान्। वन्दित्वा आचार्यान् कषायमलवर्जितान् शुद्धान् ।। १ ।। सकलजनबोधनार्थं जिनमार्गे जिनवरैः यथा भणितम् । वक्ष्यामि समासेन षट्काय सुखंकरं श्रृणु ।। २ ।। युग्मम् ।। १ मुद्रित सटीक संस्कृत प्रति में 'छक्कायहियंकर ऐसा पाठ है। शास्त्रार्थ बहु जाणे सुक्ष्मसंयमविमळ तप आचरे, वर्जितकषाय, विशुद्ध छे, ते सूरिगणने वंदीने। १। षट्कायसुखकर कथन करूं संक्षेपथी सुणजो तमे, जे सर्वजनबोधार्थ जिनमार्गे कह्युं छे जिनवरे । २ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy