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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates चारित्रपाहुड] ८३ आगे इस सम्यक्त्व चरित्रके कथनका संकोच करते हैं:-- संखिज्जमसंखिज्जगुणं च संसारिमेरुमत्ता' णं। सम्मत्तमणुचरंता करेंति दुक्खक्खयं धीरा।।२०।। संख्येयामसंख्येयगुणां संसारिमेरुमात्रा णं। सम्यक्त्वमनुचरंतः कुर्वन्ति दुःखक्षयं धीराः।। २०।। अर्थ:--सम्यक्त्वका आचरण करते हुए धीर पुरुष संख्यातगुणी तथा असंख्यातगुणी कर्मोंकी निर्जरा करते हैं और कर्मोंके उदयसे हए संसारके दःखका नाश करते हैं। क हैं ? संसारी जीवोंके मेरू अर्थात मर्यादा मात्र हैं और सिद्ध होवे के बाद कर्म नहीं हैं। भावार्थ:--इस सम्यक्त्व का आचरण होनेपर प्रथम काल में तो गुणश्रेणी निर्जरा होती है, वह असंख्यातके गुणकार रूप है। पीछे जब तक संयम का आचरण नहीं होता है तबतक गुणश्रेणी निर्जरा नहीं होती है। वहाँ संख्यात के गुणाकाररूप होती है इसलिये संख्यातगुण और असंख्यातगुण इसप्रकार दोनों वचन कहे। कर्म तो संसार अवस्था है, जबतक है उसमें दुःख का मोहकर्म है, उसमें मिथ्यात्वकर्म प्रधान है। समयक्त्वके होने पर मिथ्यात्वका तो अभाव ही हुआ और चारित्र मोह दुःखका कारण है, सो यह भी जब तक है तबतक उसकी निर्जरा करता है, इसप्रकार से अनुक्रमसे दुःख का क्षय होता है। संयमाचरणके होने पर सब दुःखोंका क्षय होवेगा ही। सम्यक्त्वका महात्म्य इसप्रकार है कि सम्यक्त्वाचरण होने पर संयमाचरण भी शीघ्र ही होता है, इसलिये सम्यक्त्वको मोक्षमार्ग में प्रधान जानकर इस ही का वर्णन पहिले किया है।। २०।। आगे संयमाचरण चारित्र को कहते हैं:--- १ - 'संसारीमेरूमत्ता 'सासारि मेरूमित्ता' इसका सटीक संस्कृत प्रतिमें सषर्षमेरूमात्रां इसप्रकार है। संसारसीमित निर्जरा अणसंख्य-संख्यगुणी करे, सम्यक्त्व आचरनार धीरा दुःखना क्षयने करे। २०। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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