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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ८१ चारित्रपाहुड] भावार्थ:--ये मूढजीव मिथ्यात्व और अज्ञानके उदय से मिथ्यामार्ग में प्रवर्तते हैं इसलिये मिथ्यात्व-आज्ञानका नाश करना यह उपदेश है।। १७।। आगे कहते हैं कि सम्यकदर्शन, ज्ञान, श्रद्धानसे चारित्रके दोष दूर होते हैं:-- सम्मदंसण पस्सदि जाणदि णाणेण दव्वपज्जाया। सम्मेण य सहदि य परिहरदि चरित्तजे दोसे।।१८।। सम्यग्दर्शनेन पश्यति जानाति ज्ञानेन द्रव्यपर्यायान्। सम्यक्त्वेन च श्रध्धाति च परिहरति चारित्रजान् दोषान्।।१८।। अर्थ:--यह आत्मा सम्यकदर्शन से तो सत्तामात्र वस्तु को देखता है, सम्यग्ज्ञान से द्रव्य और पर्यायोंको जानता है, सम्यक्त्व से द्रव्य-पर्यायस्वरूप सत्तामयी वस्तुका श्रद्धान करता है और इसप्रकार देखना, जानना व श्रद्वान होता है तब चारित्र अर्थात् आचरण में उत्पन्न हुए दोषोंको छोड़ता है। भावार्थ:--वस्तुका स्वरूप द्रव्य-पर्यायात्मक सत्तास्वरूप है, सो जैसा हैं वैसा देखे, जाने, श्रद्धान करे तब आचरण शुद्ध करे, सो सर्वज्ञके आगम से वस्तुका निश्चय करके आचरण करना। वस्तु है वह द्रव्य-पर्यायस्वरूप है। द्रव्यका सत्ता लक्षण है तथा गुणपर्यायवान को द्रव्य कहते है। पर्याय दो प्रकार की है, सहवर्ती और क्रमवर्ती। सहवर्ती को गुण कहते हैं और कमवर्ती को पर्याय कहते हैं-द्रव्य सामान्यरूपसे एक है तो भी विशेषरूप से छह हैं-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल।। १८ ।।। जीव के दर्शन-ज्ञानमयी चेतना तो गुण है और अचक्षु आदि दर्शन, मति आदिक ज्ञान तथा क्रोध, मान , माया, लोभ आदि व नर, नारकादि विभाव पर्याय है, स्वभाव पर्याय अगुरुलघु गुण के द्धारा हानि-वृद्धि का परिणमन है। पुद्गल द्रव्य के स्पर्श, रस, गंध, वर्णरूप मूर्तिकपना तो गुण हैं और स्पर्श, रस, गंध वर्णका भेदरूप परिणमन तथा अणुसे स्कन्धरूप होना तथा शब्द , बन्ध आदिरूप होना इत्यादि पर्याय है। धर्म-अधर्म के गतिहेतुत्वस्थितिहेतुत्वपना तो गुण है और इस गुण के जीव-पुद्गलके गति-स्थिति के भेदोंसे भेद होते हैं वे पर्याय हैं तथा अगुरुलघु गुणके द्वारा हानि-वृद्धिका परिणमन होता है जो स्वभाव पर्याय है। देखे दरशथी, ज्ञानथी जाणे दरव-पर्यायने, सम्यक्त्वथी श्रद्धा करे, चारित्रदोषो परिहरे। १८ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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