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________________ १२६ स्वोपज्ञभाष्ययुतं [गाथा एवं तु गविट्ठस्सा, उग्गमउप्पायणाविसुद्धस्स । गहणविसोहिविसुद्धस्स होति गहणं तु पिंडस्स ॥१४७१॥ उग्गमदोस गिहीतो, उप्पायण होइ समणउत्थाणा । ग्रहणैषणा गहणेसणाए दोसे, आयपरसमुट्ठिए वोच्छं ॥१४७२॥ दोण्णि वि समणसमुत्था, संकित तह भावतोऽपरिणयं च । सेसा अट्ट वि णियमा, गिहिणो तु समुट्टिए जाण ॥१४७३॥ सा गहणेसण चतुहा, णामं ठवणा य दव्वे भावे य । दव्वे वाणरजूह, सव्वं वत्तव्य वित्थरयो ॥१४७४॥ दव्वम्मि एस भणिता, भावे गहणेसणं तु वोच्छामि । दसहि पदेहि सुद्धं, संकितमादी इमेहिं तु ॥१४७५॥ ग्रहणैषणा संकित मक्खित णिक्खित, पिहित साहरण दायगुम्मीसे । दशधा अपरिणय लित्त छड्डिय, एसणदोसा दस हवंति ॥१४७६॥ संकाए चउभंगो, पढमो गहणे य भोयणे चेव । शकितदोषः बितिओ गहणे ण भोयणे, ततिओ पुण संकितो भोगे॥१४७७॥ शङ्काचतुर्भङ्गी णीसंकिओ तु चरिमे, किह पुण संका हवेज्ज ? जह कोई । भिक्ख पविट्ठो लद्धम्भि, हिमभिक्खं विगिचेति ॥१४७८॥ किण्णु हु खद्धा भिक्खा, लद्धा ? ण य तरति पुच्छिउँ तहियं । हिरिमं इति संकाए, अँजति इह संकितो चेव ॥१४७९॥ बीएण गहिय संकिय, विगडन्तऽन्ने य णवरि संघाडे । पगयं पहेणगं वा, सोउं णिस्संकिओ भुंजे ॥१४८०॥ णीसंकगाहि तइओ, विगडेन्तो णिसम्ममण्णसंघाडं । संका पुणाइ जारिस, लद्ध मए अमुगगेहम्मि ॥१४८१॥ महती भिक्खा तारिस, एतेहि वि लद्ध किण्ण होज्जाहि ? । णीसंकि काऊणं, भुंजति तं संकिओ चेव ॥१४८२॥ पढमो दोमु वि लग्गो, बितिओ पुण गहणे भोयणे तइती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008071
Book TitleAgam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman
AuthorPunyavijay
PublisherBabalchand Keshavlal Modi
Publication Year1994
Total Pages243
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Ethics
File Size15 MB
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