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अड़तालीस कोस के लगभग दूर अवस्थित मध्यमा पहुँचे थे । इससे हमारा अनुमान तो यह है कि महावीर की केवल-कल्याणक भूमि जंभियगाँव तथा ऋजुबालुका नदी चम्पा के पश्चिम प्रदेश में मध्यमा के रास्ते पर कहीं होनी चाहिये । (४) महावीर की निर्वाणभूमि
भगवान् महावीर की निर्वाणभूमि के विषय में हमें कोई संदेह नहीं है। भगवान् की निर्वाण भूमि वही पावा है जो विहार नगर से आग्नेय कोण में सात मील पर पुरी अथवा पावापुरी के नाम से प्रसिद्ध जैनतीर्थ है । जैन शास्त्रों में इसको मध्यमापावा कहा है, क्योंकि पावा नामक तीन नगर थेएक गोरखपुर जिला में कुशीनारा के पास जहाँ आज पड़रौना के समीप 'पपउर' नामक गाँव है । दूसरी पावा राजगृह के निकट विहार शहर से दक्षिण-पूर्व में लगभग साढ़े तीन कोस पर अवस्थित महावीर की निर्वाण भूमि के नाम से प्रसिद्ध पावापुरी और तीसरी पावा हजारीबाग के आसपास के प्रदेश की राजधानी थी । यह प्रदेश भंगि अथवा भग्ग नाम से प्रसिद्ध आर्य देश था, जिसकी गणना जैन ग्रन्थकारों ने साढ़े पच्चीस आर्य देशों में की है।
दूसरी पावा से पहली पावा वायव्य और तीसरी आग्नेय कोण में थी । इन दोनों के बीच में लगभग समानान्तर यह दूसरी पावा अवस्थित होने से वह मध्यमा पावा के नाम से प्रसिद्ध हो गई थी । जब कि बौद्ध ग्रन्थों में तीसरी पावा की चर्चा नहीं है तब जैन ग्रन्थों में पहली पावा का उल्लेख दृष्टिगोचर नहीं होता । यही कारण है कि संशोधक विद्वान दो ही पावाओं का निरूपण करते हैं । जैन और बौद्ध साहित्य का समन्वय करने पर पावा तीन सिद्ध होती हैं, जो ऊपर सूचित की हैं । १२. पाठकगण से प्रार्थना
यद्यपि पूर्व महापुरुषों ने भगवान् श्री महावीर का जीवन चरित्र सूत्र तथा चरित्र ग्रन्थों में लिखा है, तथापि भगवान् के महत्त्वपूर्ण तीर्थंकर जीवन शृंखलाबद्ध निरूपण उनमें नहीं था । यह एक अखरनेवाली बात थी । मुझे ही नहीं पर अनेक महावीर के भक्तों को यह बात अखरती थी, इसलिये
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