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________________ ३९८ श्रमण भगवान् महावीर था परन्तु पार्श्वनाथ सन्तानीय केशीकुमार श्रमण ने उसे आस्तिक और जैन धर्म का उपासक बनाया था । महावीर जब श्वेताम्बिका की तरफ विचरे तब प्रदेशी ने उनकी पूजा और महिमा की थी । बौद्ध ग्रन्थों के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि श्रावस्ती से कपिलवस्तु जाते समय श्वेताम्बिका बीच में आती थी । जैनसूत्रों के लेखों से भी श्वेताम्बी श्रावस्ती से पूर्वोत्तर में अवस्थित थी । आधुनिक उत्तर-पश्चिम बिहार के मोतीहारी शहर से पूर्व लगभग पैंतीस मील पर अवस्थित सीतामढ़ी यह श्वेताम्बिका का ही अपभ्रंश नाम है, ऐसा हमारा अनुमान है। जैन और बौद्ध लेखों के अनुसार दिशा भी मिलती है और उत्तर में पहाड़ी प्रदेश भी निकट ही पड़ता है जो केकय देश का अनार्य प्रदेश था । समतट-बंगाल का एक भाग पहले समतट कहलाता था । जब कि कतिपय विद्वान् पूर्व बंगाल को समतट कहते हैं तब कोई-कोई दक्षिण बंगाल को प्राचीन समतट बताते हैं । हमारा मत दक्षिण बंगाल को समतट माननेवालों के पक्ष में है। सहस्त्राम्रवन-यह उद्यान काम्पिल्य नगर के पास था । यहाँ पर महावीर का अनेक बार समवसरण हुआ था । सहस्त्राम्रवन (२)-हस्तिनापुर के पास के उद्यान का नाम भी सहस्राम्रवन था । भगवान् महावीर के यहाँ भी अनेक समवसरण हुए और पुट्ठिल, शिवराजर्षि आदि की प्रव्रज्याएँ हुईं । साकेत—यह कोशल देश का प्रसिद्ध नगर किसी समय इस देश की राजधानी रह चुका है और इसी कारण से कहीं-कहीं इसे अयोध्या का पर्याय बताया है । इसके समीप उत्तरकुरु नामक उद्यान था; जहाँ पाशामृग यक्ष का मन्दिर था । तत्कालीन राजा का नाम मित्रनन्दी और रानी का श्रीकान्ता था । महावीर यहाँ अनेक बार पधारे थे और अनेक भद्र मनुष्यों को निर्ग्रन्थ श्रमण बनाया था ।। फैजाबाद जिला में फैजाबाद से पूर्वोत्तर छ: मील पर सरयू नदी के दक्षिण तट पर अवस्थित वर्तमान अयोध्या के समीप ही प्राचीन साकेत नगर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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