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विहारस्थल-नाम-कोष
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ने महावीर पर जल छिड़क कर शीत का उपसर्ग किया था और भगवान् को उसको सहते हुए लोकावधि ज्ञान उत्पन्न हुआ था ।
यह स्थान वैशाली और भद्रिका के बीच में कहीं था । संभवतः अंग भूमि की वायव्य सीमा पर यह रहा होगा क्योंकि यहाँ से महावीर भद्रिका की तरफ गये थे ।।
शुद्धभूमि-प्राचीन राढ की वह भूमि जहाँ आर्य लोगों की आबादी अधिक प्रमाण में थी । संभवत. यह मुर्शिदाबाद के निकट का भूमिभाग होगा ।
शूलपाणि चैत्य-अस्थिक्ग्राम के पासवाला एक यक्ष का मंदिर जहाँ महावीर ने प्रथम वर्षा-चातुर्मास्य व्यतीत किया था और पहली ही रात को यक्ष ने उनको अनेक प्रकार से सताया था ।
श्रावस्ती (सावत्थी)-जैनसूत्रोक्त साढ़े पचीस आर्य देशों में से कुणाल नामक देश की राजधानी का नाम श्रावस्ती लिखा है । महावीर के समय में श्रावस्ती उत्तर कोशल की राजधानी थी । इसके तत्कालीन राजा का नाम जितशत्रु था । यहाँ पर महावीर ने छद्मस्थावस्था का दसवाँ वर्षाचातुर्मास्य व्यतीत किया था । केवलिदशा में महावीर कई बार यहाँ आये थे
और अनेक भव्य मनुष्यों को प्रव्रज्यायें दी थीं तथा अनेक धनाढ्य और विद्वान् शिष्यों को अपना श्रमणोपासक बनाया था । इसी श्रावस्ती के कोष्ठकोद्यान में गोशालक ने सुनक्षत्र और सर्वानुभूति मुनियों को तेजोलेश्या द्वारा मारा था तथा भगवान् महावीर पर तेजोलेश्या छोड़ी थी । गोशालक के अनन्य उपासक अयंपुल और हालाहला कुंभारिन यहीं के रहनेवाले थे । गोंडा जिले में अकौना से पूर्व पाँच मील और बलरामपुर से पश्चिम बारह मील रापती नदी के दक्षिण तट पर सहेठमहेठनाम से प्रख्यात जो स्थान है, वही प्राचीन श्रावस्ती का अवशेष है, ऐसा शोधक विद्वानों ने निर्णय किया है ।
श्वेताशोक उद्यान-यह उद्यान कनकपुर के निकट था ।
श्वेताम्बिका (सेयंबिया) यह नगरी जैनसूत्रोक्त साढ़े पचीस आर्य देशों में से केकय देश की राजधानी थी । यहाँ का राजा प्रदेशी पहले नास्तिक
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