SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 432
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विहारस्थल- नाम-कोष ३७५ वर्षाचातुर्मास्य व्यतीत किये थे । चम्पा के पास पूर्णभद्र चैत्य नामक प्रसिद्ध उद्यान था, जहाँ महावीर ठहरते थे । चम्पा के राजा का नाम, महावीर के समय में, जितशत्रु और दत्त लिखा मिलता है । पर आप के पिछले जीवन में चम्पा का राजा कुणिक (अजातशत्रु ) था । I जैन सूत्रों में चम्पा को अंगदेश की राजधानी माना है । कोणिक ने जब से अपनी राजधानी बनाई तब से चम्पा अंग-मगध की राजधानी कहलाई । पटना से पूर्व में (कुछ दक्षिण में) लगभग सौ कोस पर चम्पा थी । आजकल इसे चम्पानाला कहते हैं । यह स्थान भागलपुर से तीन मील दूर पश्चिम में है । चम्पानगरी- - चम्पा का जैन सूत्रों में बहुधा चम्पानगरी के नाम से ही उल्लेख मिलता है । पिछले ग्रन्थों में इसे चम्पापुरी भी लिखा है । विशेष के लिये 'चम्पा' शब्द देखिये | चेदी—- जैनसूत्रों में इसका नाम 'चेती' लिखा है और इसकी गणना सोलह जनपदों में की है । साढ़े पच्चीस आर्य देशों में भी इसकी गणना है और वहाँ इसका नाम चेदी तथा इसकी राजधानी का नाम 'शुक्तिमती' बताया है । यह राज्य कौशाम्बी के समीप था । ललितपुर से अठारह मील पश्चिम में मध्यभारत के ग्वालियर राज्य में जिले का मुख्य स्थान चन्देरी ही प्राचीन चेदी का आधुनिक प्रतीक है । चोराक संनिवेश ( चोराय संनिवेस ) - इस संनिवेश के समीप जासूस समझ कर महावीर नगररक्षकों द्वारा पकड़े गये थे और बाद में सोमा और जयन्ती परिव्राजिकाओं के परिचय देने पर छोड़े गये थे । एक बार इसी चोराक में गोष्ठिक - मण्डली द्वारा गोशालक पीटा गया था । यह स्थान संभवत: प्राचीन अंगजनपद और आधुनिक पूर्वबिहार में कहीं रहा होगा । छत्रपलाशचैत्य —— कयंगला (कचंगला) नगरी का वह उद्यान जहाँ पर कात्यायन स्कन्दक परिव्राजक ने महावीर के पास निर्ग्रन्थश्रमण धर्म का स्वीकार किया था । छम्माणि ( षण्मानी ) - इस गाँव के बाहर महावीर ध्यान कर रहे Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy