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श्रमण भगवान् महावीर भगवान् ने नालंदा के चातुर्मास्य की समाप्ति पर मासिक उपवास का पारणा किया था और गोशालक का शिष्य के रूप में स्वीकार किया था । महावीर के चौथे और पाँचवें गणधर का जन्मस्थान भी यही कोल्लागसंनिवेश होगा, ऐसा संभव है।
कोशल–'उत्तर कोशल' शब्द देखिये ।
कोष्ठक चैत्य-यह उद्यान श्रावस्ती के निकट था । भगवान् महावीर का समवसरण यहीं होता था । नन्दिनीपिता और सालिहीपिता गाथापतियों ने यहीं महावीर के पास जैन धर्म का स्वीकार किया था । महावीर पर गोशालक द्वारा तेजोलेश्या छोड़ने का उत्पात इसी कोष्ठक चैत्य में हुआ था ।
कोष्ठक चैत्य (२) बनारस के समीप भी एक कोष्ठक चैत्य था जहाँ पर महावीर ने चुलनीपिता और सुरादेव जैसे करोड़पति गृहस्थों को जैन श्रमणोपासक बनाया था ।
कोसला-अयोध्या का नामान्तर कोसला था । महावीर के नववें गणधर का जन्मस्थान यही कोसला थी ।
कौशाम्बी-इलाहाबाद जिले की मानजहानपुर तहसील में यमुना नदी के बायें किनारे पर जहानपुर से दक्षिण में बारह मील और इलाहाबाद से दक्षिण-पश्चिम में इकतीस मील पर कोसमइनाम और कोसमइखिराज नामक दो गाँव हैं ये ही प्राचीन कौशाम्बी के अवशेष हैं । वहाँ से करीब चार मील पश्चिम में पभोसा का गाँव और पहाड़ हैं जहाँ पर जैन मंदिर है ।
कौशाम्बी वत्सदेश की राजधानी थी । यहाँ का राजा उदयन और राजमाता मृगावती महावीर के परम उपासक थे । महावीर यहाँ अनेक बार पधारे थे ।
कौशिकी-गंगा की सहायक बड़ी नदी जिसे आजकल कुशी कहते हैं । कुशी मोंगीर और राजमहाल के बीच में होती हुई गंगा में मिल जाती है । जैन सूत्रों में कौशिकी का 'कोसी' नाम से उल्लेख है और इसकी गणना गंगा की पाँच बड़ी सहायक नदियों में है ।
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