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जिनकल्प और स्थविरकल्प
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५. बौद्धों के प्राचीन शास्त्रों में नग्न जैन साधुओं का कहीं उल्लेख नहीं है और विशाखावत्थु धम्मपद अट्ठकथा, दिव्यावदान आदि में जहाँ नग्न निर्ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है वे ग्रन्थ उस समय के हैं जब कि यापनीयसंघ और आधुनिक सम्प्रदाय तक प्रकट हो चुके थे । 'डायोलोग्स ऑव् बुद्ध' नामक पुस्तक के ऊपर से बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित कुछ आचार 'भगवान् महावीर और महात्मा बुद्ध' नामक पुस्तक में (पृष्ठ ६१-६५) दिये गये हैं, जिनमें 'नग्न' रहने और हाथ में खाने का भी उल्लेख है । पुस्तक के लेखक बाबू कामताप्रसाद की दृष्टि में ये आचार प्राचीन जैन साधुओं के हैं; परन्तु वास्तव में यह बात नहीं है । मज्झिमनिकाय में साफ-साफ लिखा गया है कि ये आचार आजीवक संघ के नायक गोशालक तथा उनके मित्र नन्दवच्छ और किस्ससंकिच्च के हैं जिनका बुद्ध के समक्ष निग्गंथश्रमण सच्चक ने वर्णन किया था ।
६. दिगम्बरों के पास प्राचीन साहित्य नहीं है । इनका प्राचीन से प्राचीन साहित्य आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थ हैं जो कि विक्रम की छठी सदी की कृति है ।
उपर्युक्त एक-एक बात ऐसी है जो वर्तमान दिगम्बर सम्प्रदाय को अर्वाचीनता की तरफ लाती हुई विक्रम की छठी सदी तक पहुँचा देती है । इनके अतिरिक्त स्त्री तथा शूद्रों को मुक्ति के लिये अयोग्य मानना, जैनों के सिवा दूसरों के घर जैन साधुओं के लिए आहार लेने का निषेध, आहवनीयादि अग्नियों की पूजा, सन्ध्या, तर्पण, आचमन और परिग्रहमात्र का त्याग करने का आग्रह करते हुए भी कमण्डलु प्रमुख शौचोपधि का स्वीकार करना आदि ऐसी बातें हैं जो दिगम्बर संप्रदाय के पौराणिक कालीन होने की साक्षी देती हैं ।
१. यतिवृषभ की 'तिलोय पन्नति', शिवार्य की 'भगवती आराधना' आदि कुछ ग्रंथ कुन्दकुन्द के पूर्व के होने संभवत हैं, परन्तु यह साहित्य इतना कम और एकदेशीय हैं कि इससे दिगम्बर संप्रदाय का निर्वाह होना कठिन है ।
२. स्त्रीमुक्ति का स्पष्ट और कट्टरतापूर्ण विरोध पहले पहल कुन्दकुन्द के ही ग्रन्थों में दिखाई देता है ।
श्रमण २२
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