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________________ जिनकल्प और स्थविरकल्प ३२५ और इस परिस्थिति के कारण प्राचीन जैन जैनेतर शास्त्रों में जैनश्रमणों के सम्बन्ध में नग्नतासूचक उल्लेख मिल जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है । इस प्रकार के उल्लेखों को देखकर कुछ युरोपीय अथवा भारतवर्षीय विद्वानों ने लिख दिया कि 'प्राचीन समय में जैनश्रमण नग्न होते थे' तो इसमें आश्चर्य नहीं है । हम खुद भी तो कहते हैं कि जैन श्रमणों में कुछ नग्न भी होते थे, पर इससे यह कैसे सिद्ध हो सकता है कि सभी जैन श्रमण नग्न होते थे, वस्त्रधारी होते ही नहीं थे ? बौद्धों की अर्वाचीन जातक कथाओं में निर्ग्रन्थ श्रमणों को 'नग्न निर्ग्रन्थ' लिखा देखकर कोई कह दे कि 'प्राचीन निर्ग्रन्थ भी नग्न होते थे' तो ऐसे आंशिक ज्ञानवालों के कथन से प्राचीन श्रमणों की नग्नता साबित नहीं हो सकती । जिन्होंने बौद्धों के सब से प्राचीन पालिग्रन्थों और प्राचीन जैन सूत्रों का तलस्पर्शी अध्ययन किया है ऐसे विद्वानों की सम्मति ही इस विषय में अधिक विश्वसनीय हो सकती है । डाक्टर हर्मन जेकोबी इसी प्रकार के विद्वान् हैं और इन्होंने जैनसूत्रों की प्रस्तावना में प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों के उल्लेखों से यह बात अच्छी तरह सिद्ध कर दी है कि प्राचीन निर्ग्रन्थ श्रमण एक वस्त्र रखते थे । इसीलिए बौद्ध लोग उन्हें 'एक साटक' कहा करते थे । । कतिपय कट्टर साम्प्रदायिक आधुनिक दिगम्बर डा० हानले जैसे विचारकों के किसी एकदेशीय अभिप्राय को पढ़कर उसे आप्त वाक्य से भी अधिक मान बैठते हैं और कहने लगते हैं कि देखो, हार्नले साहब के कथन से श्वेताम्बर संघ की उत्पत्तिविषयक दिगम्बर जैन कथानकों की सत्यता झलक जाती है । परन्तु वे यह नहीं सोचते कि हार्नले साहब ने उस कथानक की सत्यता में न तो कोई प्रमाण दिया है और न उसकी कसौटी ही की है। उन्होंने भद्रबाहु श्रुतकेवली के दक्षिण में जाने और बाद में श्वेताम्बर मत की उत्पत्ति बतानेवाला दिगम्बर जैनों का अर्वाचीन कथानक बिना विचारे ही अक्षरशः सत्य मानकर दुष्काल में मगध में रहने वाले मुनियों के वस्त्रधारण करने के कारण दिगम्बर श्वेताम्बर सम्प्रदायों का विभाग होना बता दिया । यदि उन्होंने इस कथानक को कसौटी पर चढ़ाया होता, तो उन्हें ज्ञात हो जाता कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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