________________
चतुर्थ परिच्छेद जमालिप्रवर्तित 'बहुरत' संप्रदाय
भगवान् महावीर के वचन का विरोध करनेवाले जो निह्नव हो गये हैं उनमें जमालि का नाम सर्वप्रथम है ।
जमालि का भगवान महावीर के साथ किस विषय में किस प्रकार मतभेद खड़ा हुआ इसका संक्षिप्त वर्णन चरितखण्ड में जमालि के प्रकरण में किया जा चुका है । यहाँ पर सिर्फ जमालि के मतभेद का बीज क्या है, यही बताना अभीष्ट है ।
जमालि का मतभेद क्रिया विषयक नहीं, तर्क विषयक था । इस लिए तर्कवाद की पद्धति से ही इस विषय का स्पष्टीकरण करना युक्तिसंगत होगा।
महावीर निश्चयनयानुसार क्रियाकाल और कार्यकाल को अभिन्न मानते थे । अतएव वे कहते—'चलेमाणे चलिए' 'करेमाणे कडे' अर्थात् 'चलने लगा चला, किया जाने लगा किया' इत्यादि ।
अपनी बीमारी के दरमियान जमालि ने देखा कि संस्तारक किया जाने लगा है, पर वह 'किया' नहीं कहलाता, क्योंकि उस पर शयनक्रिया नहीं हो सकती । इस स्थिति में महावीर का 'करेमाणे कडे' वाला सिद्धान्त ठीक नहीं है ।
जमालि की मान्यता थी कि कोई भी कार्य किसी एक ही समय में पूरा नहीं हो सकता । कोई भी कार्य-विषयक क्रिया अनेक समय तक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org