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________________ २४१ बोला—'' आश्चर्य ! ये तीनों पुरुष अज्ञानी और निर्बल निकले जो पुण्डरीक को उखाड़ते हुए स्वयं फँस गये। जिस रीति से इन्होंने पुण्डरीक उखाड़ना चाहा वह रीति ठीक नहीं । मैं इस विषय की यथार्थ जानकारी रखता हूँ । मैं मार्ग और गति - पराक्रम का जाननेवाला हूँ। मैं अभी जाकर इसे उखाड़ डालूँगा ।" वह जल में उतर कर पुण्डरीक की तरफ चला, पर पहले तीन पुरुषों की ही तरह पुण्डरीक और किनारे के बीच ही फँस गया । प्रवचन तब किसी अनियत दिशा से एक वीतराग और (संसार को) पार करने की इच्छावाला भिक्षु आया वह झील के तट पर आकर खड़ा हुआ और पुण्डरीक तथा दलदल में फँसे हुए उन चारों ही पुरुषों को लक्ष्य करके बोला - " अफसोस ! अपनी शक्ति और गतिविधि को न जानते हुए ये पुरुष पुण्डरीक को उखाड़ने चले परन्तु स्वयं ही फँस गये । जो तरीका इन्होंने पुण्डरीक उखाड़ने के काम में लाया वह ठीक नहीं था । इस प्रकार कमल नहीं उखाड़े जाते । इसका ठीक उपाय मैं जानता हूँ और अभी इसे उखाड़े देता हूँ ।" यह कहते हुए उसने वहीं से आवाज दी- " उड़ जा पुण्डरीक उड़ जा " और पुण्डरीक उड़ गया । भगवान् ने कहा- -आयुष्मन् श्रमणो ! यही पुण्डरीक का दृष्टान्त है । इसका अर्थ समझने योग्य है । निर्ग्रन्थ श्रमणों और श्रमणियों ने श्रमण भगवान् को वन्दन करके कहा— आयुष्मान् ने दृष्टान्त तो कहा पर हम इसका अर्थ नहीं जानते । श्रमण- श्रमणिओं को श्रमण भगवान् ने कहा— आयुष्मन् श्रमणो ! अब उस दृष्टान्त का अर्थ कहता हूँ, सुनो । यह मनुष्यलोक एक बड़ी झील है । जीवों के शुभाशुभ कर्म इसमें जल है । काम - भोग इसमें दलदल है । मनुष्य - समाज इसमें पुण्डरीक समुदाय है । चक्रवर्ती इसमें महापुण्डरीक है । अन्यतीर्थिक चार पुरुषजात हैं । धर्म भिक्षु है । धर्मतीर्थ झील का किनारा है। धर्मकथा भिक्षु की आवाज है और निर्वाण वहाँ से उड़ना है । आयुष्मन् श्रमणो ! दृष्टान्त का सारांश कह दिया । अब इसे स्पष्ट श्रमण १६ Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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