SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थंकर-जीवन २१३ की रज्जुग सभा में पधारे और वहीं वर्षा चातुर्मास्य की स्थिरता की । इस वर्ष भी भगवान् ने निर्ग्रन्थ प्रवचन का खासा प्रचार किया और राजा पुण्यपाल' प्रमुख अनेक भव्यात्माओं को निर्ग्रन्थ-धर्म की प्रव्रज्या दी । एक-एक करके वर्षाकाल के तीन महीने बीत गये और चौथा महीना लगभग आधा बीतने आया । कार्तिक-अमावस्या का प्रात:काल हो चुका था । उस समय राजा हस्तिपाल के रज्जुग सभाभवन में भगवान् महावीर की अन्तिम उपदेश सभा हुई, जहाँ अनेक गण्यमान्य व्यक्ति सम्मिलित हुए थे जिनमें काशीकोशल के नौ लिच्छवी तथा नौ मल्ल एवं अठारह गणराज विशेष उल्लेखनीय हैं । भगवान् ने अपने जीवन की समाप्ति निकट जान कर अन्तिम उपदेश की अखण्ड धारा चालू की जो अमावस्या की पिछली रात तक चलती रही । इस दीर्घकालीन देशना में आपने ५५ पुण्य फलविपाक विषयक, ५५ पापफल-विपाक विषयक और ३६ अपृष्ट व्याकरण अध्ययन सुनाये । अन्त में प्रधान नामक अध्ययन का निरूपण करते हुए अमावस्या की पिछली रात को श्रमण भगवान् महावीर इस संसार से ऊर्ध्वगमन कर गये--सब कर्मों से मुक्त हो गये। भगवान् के निर्वाण पर उक्त गणराजों ने कहा-'संसार से भावप्रकाश उठ गया, अब द्रव्य-प्रकाश करेंगे ।' इन्द्रभूति गौतम, जो उस समय भगवान् की आज्ञा से निकटवर्ती गाँव में देवशर्मा ब्राह्मण को उपदेश करने के लिए गये थे, भगवान् के निर्वाण का समाचार सुनकर बोले-'आज भारतवर्ष शोभाहीन हो गया ।' १. श्रीनेमिचन्द्रसूरिकृत 'महावीरचरियं' पत्र ९३ से ९९ । २. पुण्यपाल राजा के प्रव्रज्या लेने का उल्लेख श्रीहेमचन्द्रसूरि के महावीर चरित्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy