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तीर्थंकर-जीवन
२०९ जलचरों का आहार करेंगे । दुष्षम-दुष्षमा के भारतीय मानवों की जीवनचर्या इक्कीस हजार वर्षों तक इसी तरह चलती रहेगी ।
गौतम-भगवन् ! वे निश्शील, निर्गुण, निर्मर्याद, त्याग-व्रतहीन, बहुधा मांसाहारी और मत्स्याहारी मनुष्य मरकर कहाँ जायेंगे ? कहाँ उत्पन्न होंगे ?
महावीर-~-वे बहुधा नारक और तिर्यञ्च योनियों में उत्पन्न होंगे' ।
राजगृह से विहार करते हुए भगवान् अपापा पधारे । अपापा के उद्यान में समवसरण हुआ । गणधर के प्रश्नोत्तर में यहाँ पर भी भगवान् ने कालचक्र का सविस्तर वर्णन किया ।
उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल, उनमें होनेवाले मनुष्यों और उनकी उन्नत-अवनत स्थितियों का वर्णन करते हुए आपने वर्तमान अवसर्पिणी के दुष्षमा नामक पञ्चमारक का विशेष वर्णन किया ।
आपने कहा-तीर्थंकरों के समय में यह भारतवर्ष धनधान्य से समृद्ध, नगर गाँवों से व्याप्त स्वर्ग सदृश होता है । तत्कालीन ग्राम नगर समान, नगर देवलोक समान, कौटुम्बिक राजा तुल्य और राजा कुबेर तुल्य समृद्ध होते हैं । उस समय आचार्य चन्द्र समान, मात-पिता देवता समान, सास माता समान, श्वसुर पिता समान होते हैं । तत्कालीन जनसमाज धर्माधर्मविधिज्ञ, विनीत, सत्य-शौचसंपन्न, देवगुरुपूजक और स्वदारसंतोषी होता है । विज्ञानवेत्ताओं की कदर होती है। कुल, शील तथा विद्या का मूल्य होता है । लोग ईति, उपद्रव, भय और शोक से मुक्त होते हैं। राजा जिन-भक्त होते हैं और जैन-धर्मविरोधी बहुधा अपमानित होते हैं ।
यह सब आज तक था । अब जब चौपन उत्तम पुरुष व्यतीत हो जायेंगे और केवली, मन: पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी तथा श्रुतकेवली इन सब का विरह हो जायगा तब भारतवर्ष की दशा इसके विपरीत होती जायगी । प्रतिदिन मनुष्य समाज क्रोधादिकषाय-विष से विवेकहीन बनते जायेंगे । प्रबल जल -
१. भ० श० ७, उ० ६. प० ३०५.३०९ । श्रमण-१४
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