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________________ राजगृह में समवसरण । महाशतक श्रमणोपासक को हितसंदेश । उष्ण जलहद, आयुष्यकर्म, मनुष्य लोक की मानववसति, दुःखमान, एकान्त दुःख वेदना आदि के संबन्ध में प्रश्नोत्तर । अग्निभूति और वायुभूति का निर्वाण । वर्षावास राजगृह में । ४श्वाँ वर्ष (वि० पू० ४७१-४७०) वर्षा ऋतु के बाद भी अधिक समय तक राजगृह में स्थिरता । छठे आरे के भारत और उसके मनुष्यों का वर्णन, अव्यक्त, मण्डित, मौर्यपुत्र और अकम्पित नामक गणधरों के निर्वाण । पावामध्यमा की तरफ विहार । पावा के राजा हस्तिपाल की रज्जुग सभा में वर्षावास । अन्तिम उपदेश । कार्तिक अमावस्या की रात्रि में निर्वाण और गौतम गणधर को केवलज्ञान-प्राप्ति । ३. उपपत्ति भगवान् महावीर के केवलिजीवन संबन्धी जो सालवार विहारक्रम हमने ऊपर दिया है उसकी उपपत्ति निम्नलिखित विवरण से ज्ञात होगी । (१) 'क' और 'ग' चरित्रों के लेखानुसार भगवान् मध्यमा से विहार कर राजगृह गये थे। जल्दी से जल्दी भगवान् मध्यमा से ज्येष्ठ के कृष्णपक्ष में निकले होंगे और सामान्य विहारक्रम से चलते हुए वे ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में राजगृह पहुँचे होंगे । पहला ही समवसरण था और अनेक दीक्षायें भी हुई थीं, इस लिए भगवान्ने वहाँ पर्याप्त समय तक स्थिरता की होगी यह निश्चित है । इस दशा में पहले वर्ष का वर्षावास भी उन्होंने राजगृह में ही किया होगा । यह बात स्वतः सिद्ध हो जाती है । भगवान महावीर के केवलि-अवस्था के वर्षावास संबन्धी केन्द्र तीन ही थे । १. राजगृह-नालन्दा, २. वैशाली-वाणिज्यग्राम और ३. मिथिला । इनमें से पिछले दो केन्द्र दूर थे, वर्षाकाल अति निकट था, श्रमणसंघ नया था और समय प्रचण्ड ग्रीष्म का था, राजगृह जैसा पूर्व परिचित क्षेत्र था । इन सब बातों का विचार करने पर भी यही हृदयंगत होता है कि वर्षावास भगवान् ने राजगृह में किया होगा । (२) 'ख' चरित्र भगवान् का सीधा ब्राह्मणकुण्ड जाना बताता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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