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१४वाँ वर्ष (वि० पू० ४९९-४९८) वर्षा काल के बाद विदेह की तरफ विहार । ब्राह्मण-कुण्ड में ऋषभदत्त आदि की दीक्षायें । वर्षावास वैशाली में किया ।
१५वाँ वर्ष (वि० पू० ४९८-४९७) चातुर्मास्य के समाप्त होने पर वत्सभूमि की तरफ विहार । कौशाम्बी के उद्यान में जयन्ती की धर्मचर्चा और दीक्षा । वहीं से कोशल की तरफ प्रयाण । श्रावस्ती में सुमनोभद्र, सुप्रतिष्ठ की दीक्षायें । विदेह को विहार । वाणिज्यग्राम में गाथापति आनन्द और उसकी पत्नी शिवानन्दा का निर्ग्रन्थ-प्रवचन-स्वीकार और श्राद्धधर्म के द्वादश व्रतों का लेना । वर्षावास वाणिज्यग्राम में किया ।
१६वाँ वर्ष (वि० पू० ४९७-४९६) वाणिज्यग्राम से मगध की तरफ विहार । राजगृह में समवसरण । कालविषयक प्ररूपण । धन्य, शालिभद्र आदि की दीक्षायें । वर्षावास राजगृह में ।
१७वाँ वर्ष (वि० पू० ४९६-४९५)-वर्षा ऋतु के बाद चम्पा की तरफ विहार । चम्पा में महचन्द्र आदि की दीक्षायें । कामदेव आदि का गृहस्थधर्म-स्वीकार । उदायन के मानसिक अभिप्राय को जान कर वीतभय की तरफ विहार । उदायन की दीक्षा । फिर विदेह की तरफ विहार । बीच में भूख-प्यास से श्रमणों को कष्ट । वर्षावास वाणिज्यग्राम में ।
१८वाँ वर्ष (वि० पू० ४९५-४९४) बनारस, आलंभिकादि नगरों में होते हुए राजगृह की तरफ प्रयाण । बनारस में चूलनीपिता और सुरादेव का निर्ग्रन्थप्रवचन स्वीकार, आलंभिया में पोग्गल परिव्राजक को प्रतिबोध, चुल्लशतक का श्रमणोपासक होना, राजगह में समवसरण, मंकाती अर्जुन काश्यप आदि अनेक गृहस्थों की दीक्षायें । वर्षावास राजगृह में ।
१९वाँ वर्ष (वि० पू० ४९४-४९३) मगध भूमि में ही विहार, आर्द्रक मुनि के सामने गोशालक के महावीर पर आक्षेप, राजगृह में अभयकुमार, जालि, दीर्घसेनादि २१ राजकुमारों और श्रेणिक की नन्दा आदि १३ रानियों की दीक्षायें । वर्षावास राजगृह में ।
२०वाँ वर्ष (वि० पू० ४९३-४९२)-वत्सदेश की तरफ विहार,
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