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________________ २० संख्या किसी भी व्यावहारिक गणना से सिद्ध नहीं होती । सामग्री की इस अव्यवस्थितता ने हमारे मार्ग में कठिन समस्या उपस्थित की । जिस सामग्री के भरोसे हमने कार्य प्रारंभ किया था उसकी अपूर्णता से हमारा उत्साह यद्यपि कुछ समय के लिये मन्द हो गया तो भी हमारा निश्चय नहीं बदला । 'भले ही विलम्ब हो पर चरित्र तो अवश्य लिखा जायगा' हमारे इस संकल्प ने हमें विशेष साहित्य के अनुशीलन की तरफ प्रवृत्त किया और यथाशक्य सब आगमों का अवलोकन करने के साथ उनमें से जो जो चरितांश मिले और हमें ठीक लगे उनका संग्रह कर घटनाक्रम से योजना की जिसका सारांश नीचे लिखे मुजब है । (१) भगवान् का छद्मस्थजीवन भगवान् का छद्मस्थजीवन सब ग्रन्थों में एक सा व्यवस्थित है अतः इस विषय में हमें अधिक परिश्रम नहीं उठाना पड़ा । इस चरित्र भाग को हमने कल्पसूत्र तथा आवश्यकचूणि के ऊपर से संक्षेप रूप में लिख कर लगभग साढ़े बारह वर्ष की जीवनी थोड़े से पृष्ठों में रख दी है। (२) केवलि-जीवन का रेखाचित्र हम ऊपर कह आये हैं कि सूत्र और ग्रन्थों में भगवान् का केवलिजीवन नहीं लिखा, इसलिए इस के लिखने और व्यवस्थित करने में हमें पर्याप्त श्रम उठाना पड़ा । इस भाग की हमने जिस ढंग पर योजना की है उसका ठीक स्वरूप तो ग्रन्थ के पढ़ने से ही ज्ञात होगा तथापि संक्षेप में आभास कराने के लिये हम उसका रेखाचित्र दिखाते हैं । श्रमणजीवन का १३वाँ वर्ष (वि० पू० ५००-४९९)ऋजुवालुका के तट पर केवलज्ञान । रातभर में पावामध्यमा के महासेन उद्यान में पहुँचना । महासेन के द्वितीय समवसरण में संघस्थापना । वहाँ से विहारक्रम से राजगृह जाना । राजगृह के समवसरण में मेघकुमार, नन्दीषेण आदि की प्रव्रज्यायें । सुलसा, अभयकुमार आदि का गृहस्थधर्म-स्वीकार । श्रेणिक को सम्यक्त्वप्राप्ति । वर्षावास राजगृह में किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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