SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ श्रमण भगवान् महावीर है । वहाँ जरा-मरण और व्याधि-वेदना कुछ भी नहीं है । केशी–गौतम । वह स्थान कौन ? गौतम—निर्वाण, अनाबाध, सिद्धि और लोकाग्र इत्यादि नामों से वह पहचाना जाता है । वह कल्याणकारक, निरुपद्रव और निर्बाध है । इसकी स्थिति शाश्वती और चढ़ाव दुरारोह है । संसार-प्रवाह को तैर कर जो महर्षि इस स्थान को प्राप्त होते हैं वे सब शोकों से परे हो जाते हैं । केशी–गौतम ! तुम्हारी बुद्धि को साधुवाद ! मेरे सभी संशय दूर हो गये । सर्वसूत्रों के महासागर गौतम ! तुम्हें नमस्कार हो । इस प्रकार अपने संदेह दूर होते ही केशी कुमारश्रमण ने गौतम को सिर झुका कर अभिवादन किया और वहीं भगवान् महावीर के मार्गानुगत पाञ्चमहाव्रतिक धर्म का स्वीकार किया । केशी और गौतम के इस संमेलन से वहाँ श्रुतज्ञान और संयम धर्म का बड़ा उत्कर्ष हुआ और अनेक महत्त्वपूर्ण तत्त्वों का निर्णय हुआ । वहाँ एकत्रित सभा भी संतुष्ट होकर सन्मार्ग के स्वीकार में तत्पर हुई । भगवान् महावीर श्रावस्ती पधारे और कुछ समय वहाँ ठहरने के उपरान्त पाञ्चाल की तरफ विहार करके अहिच्छत्रा पधारे । वहाँ प्रचार करने के बाद कुरु जनपद की ओर उन्होंने विहार किया और हस्तिनापुर पहुँच कर नगर के बाहर सहस्त्राम्रवन नामक उद्यान में ठहरे ।। शिवराजर्षि हस्तिनापुर के राजा शिव सुखी, संतोषी, और धर्मप्रेमी रईस थे । एक दिन मध्यरात्रि में शिव की नींद टूट गई। वे राजकाल की चिन्ता करते करते अपनी वर्तमान स्थिति और उसके कारणों की मीमांसा में उतर पड़े । सोचने लगे-अहा ! मैं इस समय सब प्रकार से सुखी हूँ । पुत्र, पशु, राज्य, राष्ट्र, सेना, वाहन, कोष, स्त्री और धन-संपदा आदि सब बातों से मैं बढ़ रहा हूँ । १. उत्तराध्ययन अध्ययन २३, प० ३९९-४१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy