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नीर्थंकर-जीवन
१४१ ज्वालाएँ अपना थोड़ा सा प्रभाव उन पर कर ही गई । उसके ताप से आपके शरीर में पित्तज्वर हो गया था । जिस समय आप मेंढिक में बिराजते थे, गोशालक-घटना को छ: महीने होने आये थे । तबतक पित्तज्वर और खून के दस्तों से महावीर का शरीर काफी शिथिल और कृश हो गया था । भगवान् की यह दशा देखकर वहाँ से वापस जाते हुए नगरवासी आपस में बातें कर रहे थे-'भगवान् का शरीर क्षीण हो रहा है, कहीं गोशालक की भविष्यवाणी सत्य न हो जाय ?'
सालकोष्ठक चैत्य के पास मालुकाकच्छ में ध्यान करते हुए भगवान् के शिष्य 'सिंह' अनगार ने उक्त लोक-चर्चा सुनी । छट्ठ-छ? तप और धूप में आतापना करनेवाले महातपस्वी सिंह अनगार का ध्यान टूट गया । वे सोचने लगे-भगवान् को करीब छ: महीने हुए पित्तज्वर हुआ है । साथ में खून के दस्त भी हो रहे हैं । शरीर बिलकुल कृश हो गया है । क्या सचमुच ही गोशालक का भविष्य-कथन सत्य होगा ? यदि ऐसा ही हुआ तो मेरे धर्मोपदेशक धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर के संबंध में संसार क्या कहेगा ? इत्यादि विचार करते करते उनका दिल हिल गया । उन्होंने तपोभूमि से प्रस्थान किया और कच्छ के मध्य भाग में आते-आते रो पड़े, वहीं खड़े-खड़े वे फूट-फूटकर रोने लगे ।
___ भगवान् ने अनगार सिंह का रोना और उसका कारण जान लिया । अपने शिष्यों को संबोधन करते हुए महावीर ने कहा-आर्यो ! सुनते हो । मेरा शिष्य सिंह मेरे रोग की चिन्ता से मालुकाकच्छ में रो रहा है ! श्रमणो ! तुम जाओ और अनगार सिंह को मेरे पास बुला लाओ ।
भगवान् का आदेश पाते ही श्रमण निर्ग्रन्थों ने सिंह के पास जाकर कहा-चलो सिंह ! तुम्हें धर्माचार्य बुलाते हैं ।
श्रमणों के साथ सिंह सालकोष्ठक चैत्य की तरफ चले और आकर भगवान् को त्रिप्रदक्षिणापूर्वक वन्दन- नमस्कार कर हाथ जोड़कर उनके सामने खड़े हुए ।
सिंह के मानसिक दुःख का कारण प्रकट करते हुए भगवान् बोले
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