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तीर्थकर-जीवन
१३५ अब तेजोलेश्या से हीन हो गया है । अब इसके साथ तुम कुछ भी प्रश्नोत्तर करके इसे पराजित कर सकते हो । अब इसके साथ धार्मिक विवाद करने में तुम्हें कोई भय नहीं ।
भगवान् महावीर की आज्ञा पाते ही निर्ग्रन्थ श्रमण गोशालक के पास जाकर उससे धार्मिक प्रश्नोत्तर करने लगे पर गोशालक इस चर्चा में अपना पक्ष-समर्थन नहीं कर सका । अपने धर्माचार्य की इस कमजोरी को देखकर उसके कितने ही शिष्यों ने आजीवक संप्रदाय का त्याग कर भगवान् महावीर के पास निर्ग्रन्थ प्रवचन को स्वीकार किया । इस घटना से गोशालक के धैर्य का अन्त हो गया । उसने अपनी भयकातर दृष्टि चारों ओर फेंकी और 'हाय मरा' इस प्रकार की करुण चीख के बाद वहाँ से लौट कर वह अपने स्थान गया ।
गोशालक की अवस्था बडी दयनीय हो रही थी। अपनी तेजोलेश्या के प्रवेश से उसके शरीर में असह्य पीड़ा हो रही थी जिसे शान्त करने के लिये गोशालक विविध उपाय कर रहा था । एक आम की गुठली अपने हाथ में लेकर उसे बार बार चूसता, आन्तर वेदना को दबाने के लिये बारबार मदिरा पान करता, शारीरिक ताप शान्त करने के लिये अपने शरीर पर मिट्टी मिला जल सींचता, क्षण-क्षण में उन्मादवश हो नाचता गाता और हालाहला को नमस्कार करता हुआ वह बड़े कष्ट से समय व्यतीत करने लगा।
उस समय श्रावस्ती निवासी आजीवकोपासक अयंपुल गाथापति को 'हल्ला' वनस्पति के संस्थान के विषय में शंका उत्पन्न हुई कि 'हल्ला' का आकार कैसा होता होगा । यह तर्क उसके हृदय में पिछली रात को उठा और प्रभात समय अपने धर्माचार्य से इसका खुलासा पूछने के विचार से वह हालाहला की भाण्डशाला में गया, पर गोशालक की तत्कालीन उन्मत्त दशा को देखते ही लज्जित होकर वह पीछे हटा । आजीवक भिक्षु अयंपुल का मनोभाव ताड़ गये । उन्होंने तुरंत उसे अपने पास बुलाया और बातचीत में आगमन का कारण जान लिया ।
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