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मोक्ष-मार्ग
७५ २२३ जो सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट है वही भ्रप्ट है । दर्शन-भ्रप्ट को कभी
निर्वाण-प्राप्ति नहीं होती। चारित्रविहीन सम्यग्दृष्टि तो (चारित्र धारण करके) सिद्धि प्राप्त कर लेते है । किन्तु
सम्यग्दर्शन से रहित सिद्धि प्राप्त नही कर सकते । २२४ (वास्तव में) जो सम्यग्दर्शन से शुद्ध है वही निर्वाण प्राप्त
करता है । सम्यग्दर्शन-विहीन पुरुप इच्छित लाभ नही कर पाता।
२२५. एक ओर सम्यक्त्व का लाभ और दूसरी ओर त्रैलोक्य का
लाभ होता हो तो त्रैलोक्य के लाभ से सम्यग्दर्शन का लाभ श्रेष्ठ है।
२२६ अधिक क्या कहे ? अतीतकाल में जो श्रेष्ठजन सिद्ध हुए
है और जो आगे सिद्ध होंगे, वह सम्यक्त्व का ही माहात्म्य है ।
२२७. जैसे कमलिनी का पत्र स्वभाव से ही जल से लिप्त नहीं होता,
वैसे ही सत्पुरुष सम्यक्त्व के प्रभाव से कषाय और विषयों से लिप्त नहीं होता।
२२८. सम्यग्दृष्टि मनुप्य अपनी इन्द्रियों के द्वारा चेतन तथा अचेतन
द्रव्यों का जो भी उपभोग करता है, वह सब कर्मो की निर्जरा मे सहायक होता है।
२२९. कोई तो विषयों का सेवन करते हुए भी सेवन नहीं करता और
कोई सेवन न करते हुए भी विषयों का सेवन करता है। जैसे अतिथिरूप से आया कोई पुरुप विवाहादि कार्य मे लगा रहने पर भी उस कार्य का स्वामी न होने से कर्ता नहीं होता।
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