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९. धर्मसूत्र ८२. धर्म उत्कृष्ट मगल है । अहिसा, सयम और ।। उसके लक्षण है।
जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है, उसे मंत्र भी नमस्कार करते है।
८३ वस्तु का स्वभाव धर्म है । क्षमा आदि भावों की अपेक्षा से
वह दस प्रकार का है । रत्नत्रय (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र) तथा जीवो की रक्षा करना धर्म है।
८४. उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम
शौच, उत्तम सयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिचन्य तथा उत्तम ब्रह्मचर्य-~ये दस धर्म है।
८५. देव, मनुष्य और तिर्यञ्चो (पशुओ) के द्वारा घोर व भयानक
उपसर्ग पहुँचाने पर भी जो क्रोध से तप्त नही होता, उसके निर्मल क्षमाधर्म होता है ।
८६. मै सब जीवों को क्षमा करता हूँ। सब जीव मुझे क्षमा करे ।
मेरा सब प्राणियो के प्रति मैत्रीभाव है । मेरा किसीसे भी वैर नही है।
८७. अल्पतम प्रमादवश भी यदि मैंने आपके प्रति उचित व्यवहार
नही किया हो तो मै नि.शल्य और कषायरहित होकर आपसे क्षमा-याचना करता है।
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