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पारिभाषिक शब्दकोश
गृहीत- मिथ्यात्व - (दे० अभिगृहीत मिथ्यात्व ) गोत्रकर्म - जिस कर्म के कारण जीव उच्च
तथा नीच कुल में जन्म लेता है (६६) गौरव - वचन, कला, ऋद्धि तथा समृद्धि के
कारण व्यक्ति में उत्पन्न होनेवाला अभिमान (३४८) ज्ञानावरण-जीव के ज्ञान गुण को आवृत या मन्द करनेवाला कर्म (६६) ग्रन्थ - २४ प्रकार का परिग्रह (१४३) घातीकर्म - जीव के ज्ञानादि अनुजीवी गुणो
का घात करनेवाले ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय नामक चार कर्म (७)
चतु - १
अर्थ- नय, २ कपाय, ३ गति, ४ निक्षेप, ५ पर्यायार्थिकनय, ६ शिक्षाव्रत सब चार-चार होते है । चतुरिन्द्रिय- स्पर्शन, रसना, घ्राण तथा नेत्र इन चार इन्द्रियोवाले भ्रमर आदि जीव (६५०)
चतुर्दश- १ आभ्यन्तर परिग्रह, २ गुणस्थान, ३ जीवस्थान, ४ मार्गणास्थान ये सब १४-१४ होते हैं ।
चारित्र - मन वचन काय की प्रवृत्ति में निमित्तरूप गुण - विशेष ( ३६ )
चेतना - जीव में ज्ञान दर्शन की तथा कर्तृत्व भोवतृत्व की निमित्तभूत मूलशक्ति (१८५)
च्यावित - शरीर - आत्म-हत्या द्वारा छूटनेवाला शरीर ( ७४२ ) च्युत-शरीर-आयु पूर्ण हो जाने पर स्वत छूटनेवाला शरीर ( ७४२)
छद्मस्थ - अल्पज्ञ ( ४९७) जिन - इन्द्रिय-जयी तथा कपाय -जयी वीतरागी अर्हन्त भगवान् (१३)
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जीव - चार शारीरिक प्राणो से अथवा चैतन्य प्राण ने जीने के कारण आत्मतत्व ही जीव है ( ६४५), यह उपयोग लक्षणवाला (५९२६४९ ) क्रियावान् अमूर्त द्रव्य है, तथा गणना में अनन्त है ( ६२५६२८) ज्ञान की अपेक्षा सर्वगत होते हुए भी (६४८) प्रदेशो की अपेक्षा लोकाकाश - प्रमाण हैं जो अपनी सकोचविस्तार की शक्ति के कारण देहप्रमाण रहता है । (६४६-६४७)
जीवस्थान - जीवो के बस स्थावर, सूक्ष्म,
बादर आदि १४ भेद (१८२, ३६७ ) जुगुप्सा - अपने दोपो को तथा दूसरो के
गुणो को छिपाना, अथवा दूसरो के प्रति ग्लानि का भाव ( २३६)
तत्त्व - द्रव्य का अन्य निरपेक्ष निज-स्वभाव
या सर्वस्व (५०० ) तप-विषय-कपायों के निग्रह् अथवा इच्छाओं
के निरोध के लिए बाह्य तथा आभ्यन्तर रूप से की जानेवाली क्रियाएँ (१०२, ४३९)
तीर्थ - ससार मागर को पार करने के लिए तीर्थकर प्ररूपित रत्नत्रय-धर्म तथा
तद्युक्त जीव (५१४)
तेजोलेश्या - तीन शुभ लेग्याओ मे से जघन्य
या शुभ (५३४, ५४२ )
त्यवत - शरीर-सलेखना - विधि से छोडा गया शरीर (७४२)
स- रक्षार्थ या आहार आदि की खोज में स्वयं चलने-फिरने में समर्थ द्वीन्द्रियादि सभी जीव (६५० )
त्रि - १ गुणव्रत, २ गुप्ति, ३ गौरव,
४ दण्ड, ५ द्रव्यार्थिक- नय, ६. निर्वेद,
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