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स्याद्वाद
२४१ ७४३-७४४. तत्कालवर्ती पर्याय के अनुसार ही वस्तु को सम्बोधित करना या
मानना भावनिक्षेप है। इसके भी दो भेद है--आगम भावनिक्षेप और नोआगम भावनिक्षेप । जैसे अहत्-शास्त्र का ज्ञायक जिस समय उस ज्ञान में अपना उपयोग लगा रहा है उसी समय अर्हत् है , यह आगमभावनिक्षेप है। जिस समय उसमे अर्हत् के समस्त गुण प्रकट हो गये है उस समय उभे अहेत् कहना तथा उन गुणो से युक्त होकर ध्यान करने वाले को केवलजानी कहना नोआगमभावनिक्षेप है।
४३. समापन ७४५. इस प्रकार यह हितोपदेश अनुत्तरजाती, अनुत्तरदर्शी तथा
अनुत्तरज्ञानदर्शनधारी ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर ने विशाला नगरी में दिया था।
७४६. सर्वदर्शी ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर ने सामायिक आदि का
उपदेश दिया था, किन्तु जीव ने उसे सुना नही अथवा सुनकर उसका सम्यक् आचरण नही किया ।
७४७-७४८. जो आत्मा को जानता है, लोक को जानता है, आगति और
अनागति को जानता है, शाश्वत-अशाश्वत, जन्म-मरण, चयन और उपपाद को जानता है, आस्रव और सवर को जानता है, दु.ख और निर्जरा, को जानता है, वही क्रियावाद का अर्थात्
सम्यक् आचार-विचार का कथन कर सकता है । ७४९. जो मुझे पहले कभी, प्राप्त नहीं हुआ, वह अमृतमय सुभाषितरूप
जिनवचन आज मुझे उपलब्ध हुआ है और तदनुसार सुगति का मार्ग मैने स्वीकार किया है। अत: अब मुझे मरण का कोई भय नही है।
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