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स्याद्वाद
२३९ ७४०. जहाँ एक वस्तु का किसी अन्य वस्तु में अरेप किया जाता है
वहाँ स्थापना निक्षेप होता है। यह दो प्रकार का है--साकार और निराकार । कृत्रिम और अकृत्रिम अर्हत की प्रतिमा माकार स्थापना है तथा किसी अन्य पदार्थ में अर्हत की स्थापना करना निराकार स्थापना है ।
७४१-७४२. जहाँ वस्तु की वर्तमान अवस्था का उल्लघन कर उसका भूत
कालीन या भावी स्वरूपानुसार व्यवहार किया जाता है, वहाँ द्रव्यनिक्षेप होता है। उसके दो भेद है--आगम और नोआगम । अर्हतकथित शास्त्र का जानकार जिस समय उस शास्त्र मे अपना उपयोग नही लगाता उस समय वह आगम द्रव्यनिक्षेप से अर्हत् है। नोआगम द्रव्यनिक्षेप के तीन भेद है-- ज्ञायकशरीर, भावी और कर्म । जहाँ वस्तु के ज्ञाता के शरीर को उस वस्तुरूप माना जाय वहाँ ज्ञायक शरीर न आगम द्रव्यनिक्षेप है। जैसे राजनीतिज्ञ के मत शरीर को देखकर कहना कि राजनीति मर गयी। ज्ञायकशरीर भी भूत, वर्तमान और भविष्य की अपेक्षा तीन प्रकार का तथा भूतज्ञायक शरीर च्युत, त्यक्त और च्यावित रूप से पुनः तीन प्रकार का होता है। वस्तु को जो स्वरूप भविष्य में प्राप्त होगा उसे वर्तमान में ही वैसा मानना भावी नोआगम द्रव्यनिक्षेप है। जैसे युवराज को राजा मानना तथा किसी व्यक्ति का कर्म जैसा हो अथवा वस्तु के विषय मे लौकिक मान्यता जैसी हो गयी हो उसके अनुसार ग्रहण करना कर्म या तद्व्यतिरिवत नोआगम द्रव्यनिक्षेप है। जैसे जिस व्यक्ति में दर्शनविशुद्धि, विनय आदि तीर्थकर नामकर्म का बन्ध करानेवाले लक्षण दिखायी दें उसे तीर्थकर ही कहना अथवा पूर्णकलश, दर्पण आदि पदार्थो को लोक-मान्यतानुसार मागलिक कहना।
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