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मोक्ष-मार्ग
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५७१ असम्भ्रान्त (निर्भय) मत्पुरुष एक पण्डितमरण को प्राप्त
होता है और शीघ्र ही अनन्त-मरण का--बार बार के मरण का अन्त कर देता है।
साधक पग-पग पर दोपो की आशका (सम्भावना) को ध्यान म रखकर चले। छोटे से छोटे दोष को भी पाश समझे, उससे मावधान रहे। नये-नये लाभ के लिए जीवन को सुरक्षित रखे। जव जीवन तथा देह मे लाभ होता हुआ दिखाई न
दे तो परिज्ञानपूर्वक शरीर का त्याग कर दे । ५७३. (किन्तु) जिसके सामने (-अपने सयम, तप आदि साधना
का) कोई भय या किसी भी तरह की क्षति की आशका नही है, उसके लिए भोजन का परित्याग करना उचित नहीं है। यदि वह (फिर भी भोजन का त्याग कर) मरना ही चाहता
है तो कहना होगा कि वह मुनित्व से ही विन्क्त हो गया है। ५७४ सलेखना दो प्रकार की है---आभ्यन्तर और बाहा । कपायों
को कृग करना आभ्यन्तर मलेखना है और शरीर को कृग करना बाह्य सलेखना है ।
५७५. (सलेखना धारण करनेवाला साध) कपायो को कृटा करके
धीरे-धीरे आहार की मात्रा घटाये। यदि वह रोगी है--शरीर अत्यन्त क्षीण हो गया है तो आहार का मर्वथा त्याग कर दे ।
५७६. जिसका मन विशुद्ध है, उसका सस्तारक न तो तृणमय है
और न प्रासुक भूमि है। उसकी आत्मा ही उसका सस्तारक है।
५७७-५७८. दुष्प्रयक्त शस्त्र, विष, भूत तथा दुप्प्रयुक्त यन्त्र तथा ऋद्ध मर्प * सलेखना-धारी के लिए प्रामुक भूमि में तृणो का सस्तारक लगाया जाता है, जिस पर वह विश्राम करता है । इसीको लक्ष्य करके यह भाव-कथन किया गया है।
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