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मोक्ष-मार्ग
५५८ वे जीव अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवाले होते है, जिनके प्रतिसमय
(निरन्तर) एक ही परिणाम होता है। (इनके भाव अप्टम गुणस्थानवालो की तरह विसदृश नही होते ।) ये जीव निर्मलतर
ध्यानरूपी अग्नि-शिखाओं से कर्म-वन को भस्म कर देते है। ५५९. कुसुम्भ के हल्के रग की तरह जिनके अन्तरग मे केवल सक्ष्म
राग शेष रह गया है, उन मुनियों को सूक्ष्म-सराग या सूक्ष्म
कपाय जानना चाहिए। ५६० जैसे निर्मली-फल से युक्त जल अथवा शरदकालीन सरोवर
का जल (मिट्टी के बैठ जाने से) निर्मल होता है, वैसे ही जिनका सम्पूर्ण मोह उपशान्त हो गया है, वे निर्मल परिणामी
उपशान्त-कषाय * कहलाते है । ५६१. सम्पूर्ण मोह पूरी तरह नष्ट हो जाने से जिनका चित्त स्फटिकमणि
के पात्र मे रखे हुए स्वच्छ जल की तरह निर्मल हो जाता है,
उन्हे वीतरागदेव ने क्षीण-व-पाय निर्ग्रन्थ कहा है। ५६२-५६३ केवलज्ञानरूपी दिवाकर की किरणो के समूह से जिनका
अज्ञान अन्धकार सर्वथा नष्ट हो जाता है तथा नौ केवललब्धियो (सम्यक्त्व, अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख, अनन्तवीर्य, दान, लाभ, भोग व उपभोग) के प्रकट होने से जिन्हे परमात्मा की संज्ञा प्राप्त हो जाती है, वे इन्द्रियादि की सहायता की अपेक्षा न रखनेवाले ज्ञान-दर्शन से युक्त होने के कारण केवली और काय योग से यक्त होने के कारण सयोगी केवली (तथा घातिकर्मो के विजेता होने के कारण) जिन कहलाते है। ऐसा
अनादिनिधन जिनागम में कहा गया है। ५६४. जो शील के स्वामी हैं, जिनके सभी नवीन कर्मो का आस्रव __ अवरुद्ध हो गया है, तथा जो पूर्वसचित कर्मो से (वन्ध से)
सर्वथा मुक्त हो चुके है, वे अयोगीकेवली कहलाते है । जैसे जल के हिल जाने से बैठी हुई मिट्टी ऊपर आ जाती है, वैसे ही मोह के उदय से यह उपशान्तकषाय श्रमण स्थानच्युत होकर सूक्ष्म-सराग दशा में पहुँच जाता है। उपशान्तकषाय और क्षीणकषाय मे यही अन्तर है कि उपशान्तकपायवाले का मोह दबा रहता है और क्षीणकषाय का मोह नष्ट हो जाता है। १२
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