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मोक्ष-मार्ग
३३३. जिस घर म साधुओं को कल्पनीय (उनके अनुकूल) किचित्
भी दान नही दिया जाता, उस घर मे शास्त्रोक्त आचरण करनेवाले धीर और त्यागी सुधावक भोजन नही करते ।
३३४. जो गृहस्थ मुनि को भोजन कराने के पश्चात् बचा हुआ भोजन
करता है, वारतव मे उसीका भोजन करना सार्थक है। वह जिनोपदिष्ट ससार का सारभूत सुख तथा क्रमशः मोक्ष का
उत्तम सुख प्राप्त करता है । ३३५. मृत्यु-भय से भयभीत जीवो की रक्षा करना ही अभय-दान है।
यह अभय-दान सब दानों का शिरोमणि है।
२४. श्रमणधर्मसूत्र (अ) समता ३३६. श्रमण, सयत, ऋषि, पुनि, साधु, वीतराग, अनगार, भदन्त,
दान्त-ये सब शास्त्र-विहित आचरण करनेवालों के नाम है।
३३७. परमपद की खोज में निरत साधु सिह के समान पराक्रमी,
हाथी के समान स्वाभिमानी, वृषभ के समान भद्र, मृग के समान सरल, पशु के समान निरीह, वायु के समान निस्संग, सूर्य के समान तेजस्वी, सागर के समान गम्भीर, मेरु के समान निश्चल, चन्द्रमा के समान शीतल, मणि के समान कातिमान, पृथ्वी के समान सहिष्णु, सर्प के समान अनियत-आश्रयी तथा आकाश के समान निरवलम्ब होते है। (साधु की ये चौदह
उपमाएँ है।) ३३८. (परन्तु) ऐसे भी बहुत से असाधु है जिन्हें संसार मे साधु कहा
जाता है। (लेकिन) असाधु को साधु नही कहना चाहिए, साधु को ही साधु कहना चाहिए।
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