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मोक्ष-मार्ग
३२६. सावद्ययोग अर्थात् हिसारम्भ से वचने के लिए केवल सामायिक ही प्रशस्त है । उसे श्रेष्ठ गृहस्थधर्म जानकर विद्वान् को आत्महित तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए सामायिक करनी चाहिए ।
३२७. सामायिक करने से
श्रमण
(सामायिक-काल मे ) श्रावक के समान ( सर्व मावद्ययोग से रहित एव समताभावयुक्त ) हो जाता है । अतएव अनेक प्रकार से सामायिक करनी चाहिए ।
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३२८ सामायिक करते समय जो श्रावक पर - चिन्ता करता है, वह आर्त्त ध्यान को प्राप्त होता है। उसकी सामायिक निरर्थक है । ३२९ आहार, शरीर-सस्कार, अब्रह्म तथा आरम्भत्याग ये चार बाते प्रोषधोपवास नामक शिक्षा-व्रत मे आती है । इन चारो का त्याग एकदेश भी होता है और सर्वदेश भी । जो सम्पूर्णत प्रोषध करता है, उसे नियमत सामायिक करनी चाहिए ।
३३०. उद्गम आदि दोषो से रहित देशकालानुकूल, शुद्ध अन्नादिक का उचित रीति से ( मुनि आदि सयमियों को ) दान देना गृहस्थों का अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत है । ( इसका यह भी अर्थ है कि जो व्रती त्यागी बिना किसी पूर्वसूचना के अतिथि रूप मे आते है उनको अपने भोजन मे सविभागी बनाना चाहिए । )
३३१. आहार, औषध, शास्त्र और अभय के रूप में दान चार प्रकार का कहा गया है । उपासकाध्ययन (श्रावकाचार ) मे उसे देने योग्य कहा गया है ।
३३२. भोजनमात्र का दान करने से भी गृहस्थ धन्य होता है । इसमे पात्र और अपात्र का विचार करने से क्या लाभ ?
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