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नही है बस इस कुबुद्विवश उनकी परिणतियोको देखकर संकट मान लिया जाता है। कौन जीव हमारा है? हमारा तो हम तब जाने जब हमारे अपरिचित पुरूष भी देखकर बता दे कि हाँ यह इनका है। यह तो मोही लोगोकी व्यवस्था है । किसका कौन है ? अज्ञानसे बढ़कर कोई विपदा नही है। चाहे करना कुछ पड़े किन्तु ज्ञान तो सही करना चाहिए । ज्ञान बिगड़ गया तो फिर कोई सहाय नही हो सकता ।
उन्मत्तदशा
जो लोग पागल दिमागके हो जाते है, सड़को पर घूमते हे, बड़े घरके भी बेटे क्यों न हो, बड़े घनी के भी लड़के क्यो न हो, जब वे पागल हो जाते है, बेकाबू हो जाते है तो घरके लोग क्या उसे संभाल सकते है, फिर उनकी कौन परवाह करता है, उनको आराम देनेकी कोई फिर सोचता है क्या? वे तो आफतमें दिखते है। कही बुद्धि खराब हो गयी, पागलपन आ गया है तो फिर कोई उसके संभालने वाला नही है । हम आप इन मोहियोका दिमाग क्या कुछ कम बिगड़ा हुआ है? क्या कुछ कम पागलपन छाया है? समस्त अनन्त जीवोमें से छाँटकर किन्ही दो चार जीवोको जो आज कल्पित अपने घरमे है उन्हे मान लिया कि ये मेरे है और बाकी संसारके सभी जीवोको मान लिया कि ये गैर है क्या यह कम पागलपन है? ये सब अनाप - सनाप अंट्ट-सट्ट बेकायदे के सम्बन्ध मान लिए जाते है। कोई जीवके नातेसे कुछ कायदा भी इसमें किया जा रहा है क्या? अमुकका अमुक जीव कुछ लगता है ऐसी मान्यतासे कुछ फायदा भी है क्या? कोई किसी से नाता नही, कोई सम्बन्ध नही ।
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स्वार्थमय लोकसम्बन्ध लौकिक दृष्टिसे भी देखो तो कोई पुरूष बूढ़ा हो जाय किसी काममें नही आ सकता है, ऐसी स्थिति हो जाय तो उसकी कौन परवाह करता है? यदि उसके पास कुछ भी धन नही है तो कोई भी परवाह नही करता है और उसके नाममें या उसके पास कुछ धन है तो लोग मरनेकी माला फेरते है, जल्दी कब मरे । ये सब भीतरी बाते है। अनुभवसे विचारो कौन किसका सहारा है, जब तक कषायो से कषाय मिली जुली हुई है और एक दूसरे के स्वार्थमें कुछ साधक रहता है, किसी के कुछ काम के लायक रहता है तब तक ही यह लोकिक सम्बन्ध रहता है अन्यथा नही ।
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गुरू-शिष्यका उपादेय सम्बन्ध - भैया! यहाँ उपादेय सम्बंध माना जा सकता है तो गुरु और शिष्यका सम्बंध यह सम्बन्ध कुछ ढंगका भी है, विधिविधानका भी है। पर गुरु शिष्यके सम्बन्धके अलावा अन्य जितने सम्बघ है वे सब नाजुक और छलपूर्ण सम्बंध है, चाहे साला बहनोई हो, चाहे मामा भांजा हो, चाहे पिता-पुत्र हो, चाहे भाई-भाई हो, कोई भी सम्बधं हो वे सब सम्बंध अशुद्व और कलुषित भावना सहित मिलेंगे, केवल एक गुरू शिष्य का ही सम्बधें जगतके सम्बंधमें पवित्र सम्बधं हो सकता है। कोई पुरूष आजकलके मास्टर और स्टूडेन्टका परस्पर बर्तावा देखकर प्रश्न कर सकता है कि गुरू शिष्यका कहाँ रहा पवित्र सम्बंध? शिष्य यदि परीक्षामें नकल कर रहा है और मास्टर उसको टोंक दे या
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