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घड़े मे, हंडेमें, कमरे आकाश कुछ घड़ेका, हंडेका अलग अलग नही है। आकाश तो वही एक है। कही घड़ेका उठाकर धर देने से वहाँ का आकाश न रहे, घड़ेके साथ चल आए, ऐसा नही होता है। आकाश मे जो भी एक परिणमन होता है वह पूरे आकाश में होता है। वह वस्तु है।
आत्माके अत्यन्त अल्पीयस्त्वका निरसन - कुछ लोग ऐसा कहते है कि आत्मा बटके बीजके दानेकी तरह छोटा है। जैसे बड़के फलका दाना होता है तो वह सरसो बराबर भी नही है, तिलके दाने बराबर भी नही है। इतना छोटा बीज औश्र किसीका होता ही नही है। तो बटके बीजका जितना एक दाना होता है आत्मा तो उतना ही छोटा है इस सारे शरीरमें। पर यह छोटा आत्मा रात दिन इस शरीर में इतना जल्दी चक्कर लगाता रहता है कि हम आपको ऐसा मालूम होता है कि मैं इतना बड़ा हूं। जैसे किसी गोल चका में तीन जगह, दो जगह आग लगा दी जाय कपड़ा बाधैंकर और उस चकेको बहुत तेजीसे गोल गोल फिराया जाय तो आप यह नही परख पाते है कि इसमें तीन जगह आग है। वह एक ही जगह मालूम होती है। अच्छा, चका और आग की बात दूर जादे दो। अब जो बिजलीका पंखा चलता है उसमें पंखुड़ियां है पर जब पंखा चलता है तो यही नहीं मालूम होता है कि इसमें तीन पंखुड़िया है वह पूरा एक नजर आता है। इससे भी अधिक वेग से चलने वाला आत्मा यों नही विदित हो पाता है कि यह आत्मा बटके दानेके बराबर सूक्ष्म है, ऐसा एक मंतव्य है। वह भी मंतव्य ठीक नही है।
आत्माके देहप्रमाण विस्तारका समर्थन - आत्माके बट बीजके बराबर छोटा होनेका कोई कारण नहीं है, और यह इस तरहके चक्कर अगर लगाए तो शरीर तो बड़े बेहूदे ढंग का है, दो टांगे, इतनी लम्बी पसर गयी है, 2 हाथ ऐसे अलग-अलग निकल गए है, इसमें आत्मा किस तरह घूमें, कहाँ-कहाँ जाय? यह आत्मा न तो बड़के बीज के दाने बराबर छोटा है और न आकाशकी तरह एक सर्वव्यापक है किन्तु कर्मोदयानुसार जब जैसा छोटा या बड़ा शरीर मिलता है तो उस शरीर प्रमाण ही इस आत्माका विस्तार बनता है। इस आत्माके प्रदेशमें संकोच और विस्तार करनेकी प्रकृति है। छोटा शरीर मिला तो प्रदेश संकुचित हो गए बड़ा शरीर मिला तो प्रदेश फैल गए। यह आत्मा कर्मोदयसे प्राप्त अपने अपने शरीर के प्रमाण ही विस्तार में रहता है।
चारूवाक् – आत्माके सम्बंध में सिद्वान्त रूपसे जो यह मान्यता है कि यह शरीर, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पांच तत्वो से बनता है ऐसा सिद्वान्त मानने वालों का नाम है चार्वाक, जिसे सम्हाल करके बोलिये चारूवाक। चारू मायने प्रिय, वाक् मायने वचन, जिसके वचन सारी दुनिया को प्रिय लगें उसका नाम है चारूवाक। यदि कोई यह कहे कि क्या आत्मा और धर्मके झगड़ेमें पड़ते हो, खूब खावा, पियो, मौज उड़ावो और देखो इन्द्रियके विषयो में कितना मौज है, कौन देख आया है कि क्या है आगे? है ही कुछ नही
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