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बुद्धिमान की खल मे अनास्था जिस चीज मेंसे सार निकल जाता है अथवा जिसमे सार नही रहता है, उसका नाम खल है। तिल में सरसो में जो सार है वह तेल है, वह जब नही रहता तो उसकी जो हालत बनती है, उसे लोग खल कहते है । खल नाम दुर्जन का भी है, दुष्ट का भी है अयोग्य का भी है। यह सारा समागम खल की तरह है, निःसार है और निमित्त दृष्टि से हमें आधा पहुँचाने वाला है, यह जानकर विवेकी पुरुष उसमें आदर बुद्धि नही करते है ।
आर्त और रौद्रध्यान का फंसाव यह जगत आर्त और रौद्र ध्यान में फसा है। दो ही तो बातें है इस जीव के परिचय की, एक तो मौज और दूसरी पीड़ा। कोई मौज में मस्त है कोई पीड़ा में दुःखी है। पीड़ा वाले ध्यान का नाम है आर्तध्यान और मोज वाले ध्यान का नाम रोद्रध्यान। पीड़ा में सम्भव है कि क्रूरता न रहे पर मौज में तो क्रूरता रहती है। पीड़ा के समय सम्भव है कि यह पवित्र रहे, पर विषयो के मौज के समय में यह जीव अपवित्र ही रहता है। बुद्धिमानो के लिए सम्पदा विषम और अपवित्र वस्तु है । सम्पदा अपवित्र नही है किन्तु सम्पदा के प्रति जो मोह परिणाम लगता है वह परिणाम अपवित्र है । जगत में न कोई जीव अपना मित्र है, न कोई जीव अपना शत्रु है। अपना राग जिस साधन से पुष्ट है उस साधन के जुटाने वाले को लोग मित्र मानने लगते है और उस राग में जिसमें निमित्त से बाधा हुई है उसको शत्रु मान लेते है । वास्तव में कोई बाह्रा साधन मेरे शत्रु-मित्र नही है। अपनी ही कल्पना मित्र रूप में परिणत होती है, शत्रुरूप में परिणत होती है। वस्तुतः तो ये सभी कल्पनाएं अपनी शत्रु है ।
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रौद्रध्यान में क्रूरता क संक्लेश रौद्रध्यान चार प्रकार के है हिंसानन्द, मृषानन्द, चौर्यानन्द, परिग्रहानन्द । हिंसा करने कराने में मौज मानना, हिंसा करते हुए को देखकर खुश होना इस प्रकार की मौजो का नाम हिंसानन्द है। इन मौजो में क्रूरता भरी हुई है। मृषानन्द झूठ बोलने में झूठ कहलवाने में खुश होना सो मृषानन्द है । कोई किसी को झूठी बात लगाता है मजाक दिल्लगी करता है तो ऐसा करने वाले लोगो का आशय क्रूर है अथवा नही ? क्रूर है। किसी की चीज चुरा लेना अथवा किसी की चीज चुराने अथवा लूटने का उपाय बताना, राय देना और इस ही में मौज मानना ऐसा करने वाले का चित्त दुष्टता और क्रूरता से भरा हुआ है या नही? विषयो के साधन जुटाना, विषयो में ही मग्न रहना इसमें भी क्रूरता पड़ी हुई है । माना तो जा रहा है मौज, परन्तु अपने-अपने परमात्मप्रभु पर घोर अन्याय किया जा रहा है।
आर्तध्यान में क्लेश का संक्लेश
आर्तध्यान में भी मलिनता है। इष्ट का वियोग
होने पर, इष्ट के संयोग की आशा बनाए रहना यह है इष्ट वियोगज आर्तध्यान । यहाँ भी ब्रहास्वरूप से विमुख होने क प्रसंग आता है । अनिष्ट वस्तु का संयोग होने पर उसके वियोग की भावनाएँ बनाना, यही हे अनिष्ट संयोगज आर्तध्यान । यहाँ भी जीव, आत्मकल्याण
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