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रूधिर, खून, मल इत्यादि से भरा हुआ यह शरीर एक थैली है जिसमें 9 घिनावने द्वार बहते रहते है - कान से कर्णमैल, आंखो से कीचड़, नाक से नाक, मुख से लार, और मलमूत्रके स्थानोसे मलमूत्र, ये जहाँ बहते रहते है ऐसा यह घिनावना शरीर है। अरे, इसमें प्राकृतिक बात देखो कि ऊपर से नीचेके द्वारसे बहने वाली वस्तु अधिक घिनावनी है। कान से जो कनेऊ निकलता है उसपर लोग घृणाका अधिक ख्याल नहीं करते। इस कनेऊ को कीचड़ से ज्यादा गंदा नही समझा जाता है। लोग अंगुलीसे कर्णमल निकालकर फेंक देते है, हाथको कपड़े से नही पोछतें। अगर आखंसे कीचड़ निकालते है तो फिर अपने हाथको कपड़ेसे पोछतें है, और नाकसे नाक निकाला तो हाथ कपड़े से पोंछ लेते है और पानी से भी धो लेते है। आंख के मलसे नाक का मल अधिक गंदा है। नाक से ज्यादा थूक और खार आदि गंदे है। थूक और खखार से ज्यादा मूल मल गंदे है। ऊपर की इन्द्रियोंसे निचे की इन्द्रियाँ अधिक गंदी मानी जाती है।
शरीर की अशुचिता वैराग्यकी प्रयोजिका - भैया - क्या भरा है इस देहमें, कुछ निगाह तो कीजिए। इसकी निगाह करने से मनुष्यो की खोटी वासना नही रह सकती है, पर मोही जीव कहाँ निरखता है इस शरीर की गंदगीको? विधिने मानो इस शरीर को गंदा इसलिए बनाया है कि ये मनुष्य गंदे शरीर को पाकर विरक्त रहा करे, परतु यह मोह ऐसा प्रबल बना हुआ है कि विरक्ति की बात तो दूर रही, यह नाना कलाओसं इस शरीरसे अनुराग करता है। यह शरीर अपवित्र और भयानक तो है ही साथ ही यह निरन्तर विनाशकी और जा रहा है।
जीवनका निर्गमन - बचपन बड़ी अच्छी उम्र हे, पर वहाँ अज्ञान छाया है। बचपन कितना निश्चित जीवन है, कितना अधिक बुद्विका यहाँ बल है, जिस ग्रन्थको पढ़ वह तुरन्त याद हो जाए, कितना सरल व निष्कपट भाव है, निश्चिन्तता है पर वहाँ अज्ञान बसा है सो अपना कल्याण नही कर पातें। जवान हुआ तो अब भी इसमें प्रभाव अधिक है, लेकिन कामरत होकर यह जवानी को भी व्यर्थ गवां देता है। अब वृद्धावस्था आयी तो जिसने बचपन में भी कल्याणका काम नही किया, जवानी में भी कल्याण का भी काम नहीं किया तो बुढ़ापा में अब क्या करेगा? उसकी स्थिति बड़ी दयनीय हो जाती है। यह शरीर निरन्तर विनाशकी और है जितनी घड़िया निकलती जा रही है उतना ही आयुका विनाश हो रहा है। लोग कहते है कि मेरा लल्ला 8 वर्ष का हो गया, यह बढ़ गया। अरे उसका अर्थ है कि 8 वर्ष उसके मर चुके। 8 वर्ष उसकी उम्र कम हो गयी है। जिसको मानो 70 वर्ष जीना है उसकी अवस्था अब 62 वर्षकी रह गयी है, लोगोकी इस और दृष्टि नही है, उसके विनाशके दिन अब निकट आ गए है। विनाश के दिन निकट आनेका नाम है बुजुर्ग हो जाना। यह शरीर निरन्तर विनाशकी और है, ऐसे शरीरसे स्नेह करना व्यर्थ है।
ज्ञानी का चिन्तन - एक दोहा में कहा है
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