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________________ शाम से पहिले उस कमल में बैठ गया, उसकी सुगंध में आसक्त होकर वह उड़ न सका, कमल बंद हो गया। वही कमल माली तोड़कर सुबह लाया और राजा को भेट किया। राजा ने, चक्रवर्ती ने उस कमल को थोड़ा हाथ से खोलकर देखा तो मरे हुए उस भंवरे को देखा। उस भंवरे को देखकर वज्रदंत को वैराग्य जगा। वज्रदन्त चक्री का वैराग्य - अहो यह भंवरा घ्राण इन्द्रिय के विषय में क्षुब्ध होकर अपने प्राण गवां चुका है और - और भी चितंन किया। मछली रसना इन्द्रिय के विषय में लोभ में आकर प्राण गवां देती है, हाथी स्पर्शन इन्द्रिय के लोभ में आकर प्राण गवां देता है, ये पतंगे नेत्र इन्द्रिय के विषय में लुब्ध होकर अपने प्राण गवां देते है। हिरन, सापं आदि संगीत प्रिय पशु कर्ण इन्द्रिय के लाभ में आकर जान गवां देते है। ये जीव केवल एक-एक विषय के लोभी है, एक-एक विषय में अपने प्राण नष्ट कर देते है, किन्तु यह मनुष्य पंचेन्द्रिय के विषयो का लोभी है। इसकी सभी इन्द्रियाँ प्रबल है। राग सुनने, रूप देखने, इत्र सुगंध सूंघने, स्वादिष्ट भोजन करने आदि का बड़ा इच्छुक है, कामवासना के साधन भी यह चाहता है, और इन इन्द्रियो के अतिरिक्त मन का विषय तो इसके बहुत प्रबल लगा हआ है। मन और पंचेन्द्रिया के विषयो का लोभी यह मनुष्य है, इसका क्या ठिकाना है? यो विचारते हुए वज्रदन्त चक्रवती विरक्त हो गए। वज्रदन्त चक्री के पुत्रो का वैराग्य - वज्रदंत चक्रवर्ती के हजार पुत्र थै। बड़े पुत्र से कहा कि तुम इस राज्य को संभालो, हम तुम्हे तिलक करेंगे। बड़ा पुत्र बोला कि मिता जी आप मुझे क्यो राज्य सम्पदा दे रहे है? आप बड़े है आप ही इसे संभाले, हम तो आपके सेवक है। बज्रदन्त बोले कि नही मुझे राज्य सम्पदा से मोह नही रहा। मै आत्म कल्याण के लिए वन में जाऊगां, यह राज्य सम्पदा अब मुझे रूचिकर नही हो रही है, यह अनर्थ करने वाली है। तो पुत्र बोला कि जो सम्पदा अनर्थ करने वाली है फिर उसे आप मुझे क्यो दे रहे हे ? आप छोड़कर जायेगें तो हम भी आप के साथ जायेगे। मुझे इस राज्य सम्पदा से प्रयोजन नही है। दूसरे तीसरे सभी लड़को से कहा। उन लड़को में से किसी ने भी स्वीकार न किया और वे सबके सब वज्रदन्त के ही साथ दिगम्बरी दीक्षा लेने के लिए उत्सुक हुए। वज्रदन्त ने बहुत समझाया देखो तुम्हारी छोटी उमर है, अभी तुमने भोगो को नही भोगो है, कुछ दिन को रह जाओ जंगल में बहुत कठिन दुःख होगे, ठंडी, गर्मी, क्षुधा, तृषा आदि की अनेक वेदनाएं तुम कैसे सहोगे, तो पुत्र बोलते है कि पिता जी तुम तो साधानण राजा के लड़के हो और हम चक्रवती के पुत्र है, आपसे भी अधिक साहस हम रख सकते है। चक्रवर्ती जो होता है वह चक्रवर्ती का लड़का नही होता। सामान्य राजा का पुत्र हुआ करता है फिर वह अपने पौरूष से चक्रवर्ती होता है। तो चक्रवर्ती का लड़का लड़के यो कहते है और अपने पिता जी के साथ जंगल को चल देते है। उस समय बालक पौत्र को तिलक करके चल दिये थे।
SR No.007871
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala Merath
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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