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उसकी दृष्टि अच्छे कार्यो का ख्याल ही नही है। वहाँ भी केवल मानपोषण लोभ पुष्टि आदि ही लगे हुए है। कदाचित् भाग्यवश धन भी मिल जाय तो खोटे रास्तो से कुमार्गोसे छल करके, अन्याय करके, दगा देकर किसी भी प्रकार धनसंचय करता है तो उसका धन पाप कार्यो में ही लग सकता है, अच्छे कार्यो में लगने की अत्यन्त कम सम्भावना है। लोग भी प्रायः इस प्रकार देखतें है कि जिनकी कमाई खोटी होती है, खोटी कमाई से धनका संचय होता है तो वह वैसा पाप कार्यो में लगकर खर्च हो जायगा। अथवा किन्ही झंझटो से किन्ही प्रकारो से किन्ही प्रकारो से लूट पिटकर नष्ट हो जायगा, अच्छे कार्यो में वह नही लग पायगा।
शुद्ध अर्जन से धनकी अटूट वृद्धि की अशक्यता - नीतिकार कहते है कि सज्जनो की सम्पत्ति शुद्व धन से नहीं बढ़ पाती है। जैसे समुद्र स्वच्छ जलकी नदियोसे नही भरा जाता है, गंदा पानी मटीला मैला पानी से समुद्र भरा करता है। स्वच्छ निर्मल जल से नदियोकी भरमार नही होती है। गंदले मलिन जलसे ही नदियाँ भरी होती है और उन नदियो से ही समुद्रं भरा जाता है। यो ही समझिये कि सज्जन पुरूष भी हो उस तक के भी सम्पदा एकदम बढ़ेगी तो शुद्व मार्ग से न बढ़ेगी। धनसचंय में कुमार्गोका आश्रय लेना ही पड़ता है। ठीक है। अध्यात्मदृष्टिसे तो आत्मतत्वकी दृष्टि को छोड़कर कि किन्ही भी बाहा पदार्थो दृष्टि लगाये, उनकी आशा करें तो वे सब अनीतिके मार्ग है, कुमार्ग है लेकिन जिस पदमें संचयके बिना गुजारा नही हो सकता ऐसे गृहस्थ की अवस्थामें कोई और उपाय नही है। उसे धनका सचंय अथवा उपार्जन करना ही पड़ता है। ठीक है, लेकिन इतना विवके तो होना चाहिये कि लोक में जो अनिहित मार्ग है, कुमार्ग है उनसे धन संचय र करे। विशुद्व नीति मार्ग से ही धनका उपार्जन करे।
यथार्थ सचाईके बिना ऐहिक कठिन समस्या - आज के समय में आजीविकाकी कठिन समस्या सामने है। लोग जैसे कि कहते है कि ब्लेक किए बिना, टैक्स चुराये बिना दो तरहकी कापियाँ लिखे बिना काई धन कमा ही नही सकता है, वह सुखसे रोटी भी नही खा सकता है, उस पर टैक्स का अनुचित बोझ लद जाता है। इस सम्बन्ध में प्रथम तो बात यह है कि यह व्यापारी ईमानदार है, सच्चा है यह प्रमाण नही है, इस कारण अनाम सनाप टैक्स लगा दिया जाता है जिन पुरूषोके सम्बन्ध में यह निर्णय भली प्रकार हो जाता है और जिनकी सच्चाई के साथ सारे कागजात पाये जाते है तो कुछ वर्षों में उसकी सच्चाई का ऐसा ढिंढोरा हो जाता है कि लोग उसे समझते है कि यहाँ सत्य बात होती है। तो उसके व्यापार में कमी नही आती है और न फिर अधिकारी उसे सताते है। लेकिन जब अधकचरे ढंगसे कुछ सच्चाई काम करे कुछ संदेह है सो कभी कभी कुछ डिग जाये सो ऐसे डगमग पग से सच्चाई की व्यवस्था की जाती है उससे पूरा नही पड़ता हे तो कमसे