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________________ परिणमन ये सब है विपदा। इन सब विपदावोको विपदारूप से अपनी नजरमें रखना है। इन सब विपदावो से छूटने का उपाय केवल भेदविज्ञान है। जितने भी अब तक साधु हुए है वे भेदविज्ञानके प्रतापसे हुए है, और जो अबतक जीव बंधे पड़े है व इस संसार में रूलते चले जा रहे है वे इस भेदविज्ञानसे अभावसे ऐसी दुर्गति पा रहे है। यथार्थ विपदा तो जीवपर मोहकी, भ्रमकी है। भ्रमी पुरूष अपनेको भ्रमी नही समझ सकता। यदि अपनी करतूत को भ्रमपूर्ण मान ले तो फिर भ्रम ही क्या रहा? भ्रम वह कहलाता है जिसमें भ्रम भ्रम न मालूम होकर यथर्था बात विदित होती है भ्रमका ही नाम मोह है। लोग विशेष अनुरागको मोह कह देते है किन्तु विशेष अनुरागका नाम मोह नही है, भ्रम का नाम मोह है। रागके साथ साथ जो एक भ्रम लगा हुआ है, यह मेरा है, यह मेरा हितकारी है, ऐसा जो भ्रम है उसका तो नाम मोह है और सुहावना जो लग रहा है उसका नाम राग है। भ्रमकी चोट - राग से भी बड़ी विपदा, बड़ी चोट मोहकी होती है। इस मोहमें यह जीव दूसरे की विपदाको तो संकट मान लेता है। अमुक बीमार है, यह मर सकता है इसका मरण निकट आ गया है, ये लोग विपदा पा सकते है। सबकी विपदावोको निरखता जायगा, सोचता जायगा किन्तु खुद भी इस विपदा में ग्रस्त है ऐसा ध्यान न कर सकेगा। इस भ्रमके कारण, बाहादृष्टिके कारण यह जीव सम्पदासे क्लेश पा रहा है और उस ही सम्पदामें यह अपनी मौज ढूढं रहा है। ज्ञानी पुरूष न सम्पदामें हर्ष करता है और न विपदा में विषाद मानता है। आयुर्वृद्विक्षयोत्कर्षहेतुं कालस्य निर्गमम् । वाञछतां धनिनामिष्टं जीवितात्सुतरां धनम् ।।15।। लोभीके जीवनसे भी अधिक धन से प्रेम - जिस वैभव के कारण मनुष्यपर संकट आते है उस वैभव के प्रति इस मनुष्यका प्रेम इतना अधिक है कि उसके सामने जीवन का भी उतना प्रेम नही करता है। इसके प्रमाणरूपमें एक बात यह रखी जा रही है जिससे यह प्रमाणित हो कि धनी पुरूषोको जीवन से भी प्यारा धन है। बैंकर्स लोग ऐसा करते है ना कि बहुत रकम होने पर ब्याज से रकम दे दिया करते है। व्याज कब आयगा, जब महीना 6 महीना, वर्षभर व्यतीत होगा। किसीको 2 हजार रूप्या व्याज पर दे दिया और उसका 10 रूप्या महीना ब्याज आता है तो एक वर्ष व्यतीत हो तो 120 रूप्या आयगा। तो ब्याज से आजीविका करने वाले पुरूष इसकी प्रतीक्षा करते है कि जल्दी 12 महीने व्यतीत हो जावें। समयके व्यतीत होने की ही बाट जोहते है तभी तो धन मिलेगा। अब देखो कि एक वर्ष व्यतीत हो जायगा तो क्या मिलेगा? ब्याज धन और यहाँ क्या हो जायगा एक सालका मरण। जिसको 50 साल ही जीवित रहना है तो एक वर्ष व्यतीत हो जायगा तो अब 49 वर्ष ही जियेगा।
SR No.007871
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala Merath
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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