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लेता है कि देखो उसका माल पकड़ा गया, उसका माल जप्त हो गया, यह मरने वाला है, यह मर गया, किसी पर कुछ विपदा आयी, इस तरह पकड़ा गया, उसका माल जप्त हो गया, यह मरने वाला है, यह मर गया, किसी पर कुछ विपदा आयी, इस तरह औरो की विपदा को तो निरखता रहता है, परंतु अपने धन वैभव के उपार्जन में जो विपदा सह रहा है उसे विपदा नही मालूम करता है। धन संचय में रंच भी विश्राम नही ले पाता है। हो रही है बहुत सी विपदाएँ और विडम्बनाएँ, पर अपने आपके लिए कुछ विडम्बना नही दिखती है। मोही जीव को कैसे हटे यह परिग्रह लालच तृष्णा से? इसे तो यह दोष भी नही मालूम होता है कि मै कुछ अपराध कर रहा हूं।
अज्ञानी को स्वकीय अपराध का अपरिचय - ज्ञानी संत जानता है कि मेरा स्वरूप शुद्ध ज्ञानानन्द है, ज्ञान और आनन्द की विशुद्ध वर्तना के अतिरिक्त अन्य जो कुछ प्रवृत्ति होती है, मन से प्रवृत्ति हुई, वचनों से हुई अथवा कायसे हुई तो ये सब प्रवृत्तियां अपराध है। अज्ञानी को वे प्रवृत्तियाँ अपराध नही मालूम देती, वह तो इन प्रवृत्तियों को करता हुआ अपना गुण समझता है। मुझे मे ऐसी चतुराई है, ऐसी कला है कि मैं अल्प समय मे ही धन संचित कर लेता हूं। ज्ञानी पुरूष जब कि यह समझता है कि एक ज्ञानस्वभावके आश्रयको छोड़कर अन्य किन्ही भी पदार्थोका जो आश्रय लिया जाता हे वे सब अपराध है उससे मुझे लाभ नही है, हानि ही है। कर्मबंध हो, आकुलता हो और कुछ सार बात भी नही है। ऐसा यह ज्ञानी पुरूष जानता है। न तो अज्ञानी को धनसंचय में होने वाली विपदाका विपत्तिरूप अनुभव होता है और न जो धनोपार्जन होता है उसमें भी जो अन्य विपदाएँ आती है उनका ही स्मरण हो पाता है।
मोहीके विवके अभाव - विवेक यह बताता है कि धन आदि के कारण यदि कोई विपदा आती देख तो उसे धनको भी छोड़ देना चाहिए। फंसनेपर लोग ऐसा करते भी है। कोई कानूनविरूद्व चीज पकड़ ली जाय, जैसे कि मानो आजकल शुद्ध स्वर्ण कुछ तोलोसे ज्यादा नही रख सकते है और रखा हुआ हो तो उस सोनेका भी परित्याग कर देते है, जाँच करने वालेकी जेब में ही डाल देते है कि ले जावो यह तुम्हारा है। कितनी जल्दी धन विपदा के समय छोड़ देते है, किन्तु वास्तव में उसका छोड़ता नही है। उस समय की सिरपर आयी हुई विपदासे बचनेका कदम है। चित्तमें तो यह भरा है कि इससे कई गुण
और खरीदकर यह घाटा पूरा करना पड़ेगा। धन वैभवके कारण भी अनेक विपदा आती है। कुछ बड़े लोग अथवा उनके संतान तो कभी कभी इस धनके कारण ही प्राण गंवा देते है। ऐसे होते भी है। कितने ही अनर्थ जिन्हे बहुतसे लोग जानते है। ये डाकू धन भी हर ले जाये और जानसे भी मार जाएँ क्योकि उनके मनमे यह शंका है कि धन तो लिए जा रहे है, कदाचित इसने पकड़वा दिया तो हम लोग मारे जायेंगे, इससे जान भी ले लेते है। आजकल किसी की जान ले लेना एक खेलसा बन गया है। छुद्र लोग तो कुछ पैसो के हिसाब पर ही दूसरो की जान ले डालते है। इस धन के कारण कितनी विपदा आती है,
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