________________
अपने बचाव का कर्तव्य - भैया ! ये इष्ट अनिष्ट पदार्थ तो न रहेगें साथ, किन्तु जो हर्ष और विषाद किया है उसका संस्कार इसके साथ रहेगा, अभी और परभव में क्लेश पैदा करेगा। इस कारण इष्ट वस्तु पर राग मत करो और जो कोई अनिष्ट पदार्थ है उनसे व जो प्राणी विराधक है, अपमान करने वाले है या अपना घात करने वाले है, बरबादी करने वाले है, ऐसे प्राणियो से भी अन्तर में द्वेष मत करो। बचाव करना भले ही किन्ही परिस्थितियों में आवश्यक हो, पर अंतरंग में द्वेष मत लावो। मेरे लिए कोई जीव मुझे बुरा नही करता है क्योकि कोई कुछ मुझे कर ही नही सकता है। कोई दुष्ट भी हो तो वह अपन परिणाम भर ही तो बनायेगा, मेरा क्या करेगा ? मै ही अपने परिणामों से जब खोटा बनता हूँ तो मेरे को मुझसे ही नुक्सान पहुंचता है तो इष्ट पदार्थ में न राग करो और न अनिष्ट पदार्थ में द्वेष करो।
विराधकः कथं हन्त्रे जनाय परिकुप्यति।
त्रयंगुलं पातयन् पद्भ्यां स्वयं दण्डेन पात्यते।।10।। प्रत्ययकारी पर क्रोध करने की व्यर्थता - कोई पुरूष किसी दूसरे का घात करना चाहता हो, सताता हो या घात किया हो तो वह जीव भी किसी न किसी समय सतायेगा, बदला लेगा। जब कोई सता रहा हो तब यह सोचना चाहिए मैने इसे सताया होगा, क्लेश पहुँचाया होगा पहिले तो यह प्रतिकार कर रहा है, इस पर क्या क्रोध करना? जैसा मैने किया तैसा इसके द्वारा मुझे मिल रहा है। जैसे कोई पुरूष भूसा काठ या लोहे के बने हुए तिरंगुल से समेटते है, उसमे तीन अंगुलियां सी बनी होती है? उसके चलाने पर चलाने वाला आदमी भी झुक जाता है। वह तिरंगुल चलाने वाला जब भ्जुस समेटता है तो जमीन पर वह अपने पैर भी चलाता जाता है। यदि वह दोनो पैरो से चलावे तो एकदम लट्ठकी तरह गिर जावेगा। उदाहरण में यह बात कही गयी है। कि जो दूसरे को मारता है वह भी उस दूसरे के द्वारा कभी मारा जाता है, जो दूसरे को सताता है वह भी कभी उस दूसरे के द्वारा सताया जाता है। जब कोई सताये तो यह सोचना चाहिए कि इस पर क्या क्रोध करना, मैने ही किसी समय में इसका बुरा किया है। कर्म बंध किया है उसके हृदय में यह घटना आ गयी है। इसमें दूसरे पर क्या क्रोध करना है?
रोष और द्वेष भावनामें बरबादी - इस दृष्टान्त में दूसरी बात यह भी जानना कि भुस को समटने वाला तो तिरंगुल होता है, उसे चलाते है और साथ ही पैर घसीटते है ताकि भुस आसानी से इकट्ठा हो जाय। कोई पुरूष एक पैर से तिरंगुल ढकेलता है और कोई पुरूष दोनो पैरों से ढकेले तो वह पुरूष ही गिर जायगा, ऐसे ही जो पुरूष तीव्र कषाय करके किसी दूसरे पुरूष का घात करता है, अपमान करता है, सताता है तो वह पुरूष ही स्वयं अपमानित होगा और कभी विशेष क्लेश पायगा। इस कारण अपने मन बिल्कुल स्वच्छ रखने चाहिए। किसी का बुरा न सोचा जाय, सब सुखी रहे। जो पुरूष सबके सुखी होनेकी भावना करेगा वह सुख रहेगा और जो पुरूष दूसरे की दुः,खी होने की भावना करता है वह चूंकि संक्लेश परिणाम बिना कोई दूसरेके दुःखी होने की सोच नही
33