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स्त्री - यह भी एक भिन्न जीव है, सबके अपने-अपने कर्म है सबके अपने-अपने कषाय है! कषाय से कषाय मिल रही है इस कारण परस्पर में प्रेम है। जिस घर को पुरूष आबाद रखना चाहता है उस ही घर को स्त्री भी आबाद रखना चाहती है, एक सी कषाय मिल गयी और उसके प्रसंग में प्रत्येक बात में भी प्रायः एक सी कषाय मिल गयी है। जब दोनो उद्देश्य एक हो जाते है तो कषाय अनुकूल हो ही जाती है। किसी एक काम को मिलजुल कर करने की धुन बन जाय 5 आदमियो की भी तो उन पाँचो की इच्छा कषाय एक सी अनुकूल हो जायगी और फिर उस अनुकूलता में एक दूसरे के लिए श्रम करते रहेगे।
दार, भार्या, कलत्र - यहाँ स्त्री को दारा शब्द से कहा गया है। हिदीं में लोग दारीदारी कहा करते है। गाली के रूप में यह शब्द बोला जाता है। यह रिवाज यहाँ चाहे न हो पर देहातो में अधिक है। दारा का अर्थ है दारयति भ्रातृन् इति दारा, जो भाई-भाई को लड़ाकर जुदा कर दे। स्त्री का नाम दारा भी है। उस शब्द में ही यह अर्थ भरा है। यद्यपि यह रिवाज हो गया है कि बड़े हो गए तो अब जुदे-जुदे होना चाहिए, मगर बड़े हो जाने से जुदा कोई नही होता। विवाह होने से स्त्री होने से फिर जुदेपन की बात मन में आती है तो उस जुदेपन के होने का कारण स्त्री है ना इसलिए उसका नाम दारा रक्खा गया है। स्त्री का भार्या भी नाम है। जो अपनी जिम्मेदारी समझकर घर को निभाये उसे भार्या कहते है। कलत्र भी कहते है। कल कहते है शरीर को और त्र मायने है रक्षा करने वाला। पति के शरीर की रक्षा करे, पुत्र के शरीर की रक्षा करे और खाना देकर सभी के शरीर की रक्षा करती है इसलिए उसका नाम कलत्र है, इसे यह मूढ जीव अपना मानता है।
स्त्री की पति से विविक्ता - स्त्रीजन पुरूषो के विषय में सोच लों कि वे पति को अपना समझती है व्यवहार में चूँकि एक उद्देश्य बना है और कषाये मिल रही है इस कारण मिल जुलकर रहा करती है तिस पर भी ऐसा नही है कि पुरूष की इच्छा से स्त्री काम करती हो, स्त्री की इच्छा से पुरूष काम करता हो, यह त्रिकाल हो ही नही सकता है। सब अपनी-अपनी अच्छाव से अपना अपना काम करते है। मिलजुल गयी इच्छा और कषाय, पर प्रेरणा सबको अपनी-अपनी इच्छा की ही मिली हुई है, ये मोही जीव ऐसे परजनो को अपना मानते है।
पुत्र - व्यामोही पुरुष को अपना मानते है। पुत्र किसे कहते है? जो कुल को बढ़ाये पवित्र करे। इस आत्मा का वंश है चैतन्यस्वरूप। इस चैतन्यस्वरूप को पवित्र करने वाला, वृद्विगंत करने वाला तो यह ज्ञानपरिणत स्वंय का आत्मा हे इसलिए यह मेरा तत्व ज्ञान ही वस्तुः मेरा पुत्र है जो चैतन्य कुल को पवित्र करे। यहाँ कौन सा कुल अपना है? आज इस घर में पैदा हुए है तो इस घर के उत्तरोतर अधिकारी बनते जायें ऐसा कुल मान लेते है पर यहाँ के मरे कहाँ पहुँचे 343 घनराजू प्रमाण लोक में न जाने कहाँ-कहाँ जन्म हो जाय, क्या रहा फिर यहाँ का समागम? सब मोह की बातें है। पुत्र का दूसरा नाम है सुत। सुत उसे कहते है जो उत्पन्न हो, इसी से सूतक शब्द बना है। कही ऐसी प्रथा है कि जन्म के
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