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________________ भेड़ो बकरियों की तरह ही वह रहने लगा, इसको जो जैसा चाहे वैसे ही सीग मारे, गड़रिया कान पकड़कर खीचता है और वह सिंह का बच्चा उसी तरह दीन होकर रहता है जैसे भेड़ बकरियाँ रहती है। कभी किसी दूसरे सिंह की दहाड़ को सुनकर, उसकी स्थिति की देखकर कभी यह भान कर ले कि ओह मेरे ही समान तो यह हे जिसकी दहाड़ से ये सारे मनुष्य ऊटपटांग भाग खड़े हुए है। अपनी शूरता का ध्यान आए तो यह भी दहाड़ मारकर सारे बंधनो को तोड कर स्वतंत्र हो जायगा, ऐसे ही हम आप संसारी प्राणी उस तेजपुंज के प्रताप को भूले हुए है जिस विशुद्व ज्ञान में यह सामर्थ्य है कि सारे संकट दूर कर दे। इस भव की बातो में ज्यादा न उलझें, यहाँ कोई संकट नही है। संकट तो वह है जो खोटे परिणमन उत्पन्न होते है, मोह रागद्वेष की वासना जगती है यह है संकट । यह मोही प्राणी प्रतिक्षण आकुलित रहता है। ये ही हम आप जब इस मोह को दूर करे, विवेक का बल प्रकट करें और अपने तेजपुंज की संभाल करे, अतंरगं में दृढ़ प्रतीति कर लें तो समस्त संकट दूर हो जायेंगे। आत्मोन्नति से महत्व का यत्न - भैया ! दूसरे नेतावो को, धनिकों को देखकर विषाद न करे। वे दुःखी प्राणी है। यदि उन्हें ज्ञानज्ञयोति का दर्शन नही हुआ है, तुम उनसे भी बहुत बड़े बनना चाहते हो तो सांसारिक माया का मोह दूर करके अपने आप में शाश्वत विराजमान इस ज्ञानस्वरूप का अनुभव कर लो, तुम सबसे अधिक बड़े हो। जिन्हें कल्याण की वाञछा है उनका कर्तव्य है कि वे ऐसी धुन बनाएँ कि जब पूछे तो इस आत्मस्वरूप की बात पूछे, जब चाहे तब आत्मस्वरूप की बात चाहे और देखें जानें तो आत्मस्वरूप की बात ही देखें जाने, ऐसी ज्ञानज्योति प्रकट हो जाय तो फिर आकुलता नही रह सकती है। सम्यग्ज्ञान का चमत्कार - भैया ! लग रहा होगा ऐसा कि यह योगी संतो के करने की बात गृहस्थजनों को क्यों बताना चाहिए? इससे गृहस्थ कुछ फायदा लेंगे क्या ? अपने हृदय से ही बतावों। बिडम्बना का बोझ कुछ हल्का हुआ है या नही? कुछ अंतरंग में प्रसन्नता जगी है या नही? अरे इतना आचरण नही कर सकता तो न सही, किन्तु करने योग्य परमार्थतः क्या काम है, उसका ज्ञान करने में ही महान् आनन्द उत्पन्न होने लगता है। सूर्य जब उदित होकर सामने आये तब आयगा, किन्तु उससे पौन घंटा पहिले से ही अंधकार सब नष्ट हो जाता है। यह चारित्र आचरण आत्मरमण, स्थिरता जब आए, किन्तु इसका ज्ञान, इसकी श्रद्वा तो पहिले से ही आकुलता को नष्ट करने लगती है। यह ज्ञानभावनाा समस्त दुःखो का नाश करने वाली है और आत्मा में बल उत्पन्न करने वाली हे। इस ज्योति के अनुभव से जो उत्कृष्ट आनन्द होता है उससे कर्म भी क्षीण होने लगते है और आत्मा में भी एकाग्रता होने लगती है। आत्मलाभ की प्रारम्भिक तैयारी - आत्मा के सहज स्वरूप की बात तो जानने की और लक्ष्य की है। अब इसकी प्राप्ति के लिए हम अपने पद में कैसा व्यवहार करें कि हम 221
SR No.007871
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala Merath
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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