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________________ प्रीति न जगे तो वह योग्यता आ सकती है कि ज्ञानमें यह उत्तम तत्व प्रकाश पाये। इन्द्रियाके विषयो से वैराग्य होवे तो आत्माका यह विशुद्ध स्वरूप अनुभवमें आने लगता है। भोगने के बाद तो कुछ विवेक बनता है कि अरे न भोगते भोग तो क्या था, बडा सुरक्षित रहता। जब ज्यादा पेट भर जाता है, कुछ अड़चन सी होने लगती है अथवा कोई उदर विकार हो जाता है तो वह सोचता है कि मैने बड़ी चूक की, अधिक चीज खा ली, अगर न खाते तो कुछ भी नुकसान न था। यह कष्ट तो न होता जिसके दर्दके मारे यह बेचैनी हो रही है। तो भोग भोगनेके बाद फिर सुध आती है। यह कुछ यद्यपि जघन्य ज्ञानकी बात है, लेकिन भोगनेके बाद भी यदि यथार्थ रूपमें सुध आ जाय तो वह भी भली बात है। मोही प्राणियोको तो केवल विषय भोग, इन्द्रियविषयोके साधन जोड़ना, धन कमाना - ये ही सब रूचिकर लग रहे है। इन विषयोकी प्रीति तो स्वात्माके अनुभवमें बाधक है। यह सभी विषयोकी चाह और परिग्रहो की मुर्छा हअ जाये तो आत्मा आनन्दका स्वाद लेने लगता है। व्यर्थके कोलाहलसे अलाभ - है आत्मन् व्यर्थ के कोलाहलसे क्या लाभ पा लोगे? दूसरे जीवोसे प्रीति बढ़ाना और दूसरोका भार अनुभव करना, दूसरोके लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करना ये सब व्यर्थके कोलाहल है, इनमें मिलता कुछ नही है, आखिर मरना सबको पड़ता है। मरनेके बाद भी इस जीवको यहाँ के कामोसे कुछ लाभ मिले तो बतावो। जो जीव चला गया यहाँ से तो लोग शरीर को तुरन्त जलानेका यत्न करते है। भले ही कभी किसी बूढेके मर जानेपर बहुत बड़ा विमान सजाया जाय, शंख बजाया, पर अब उस आत्माके लिए क्या है? उसने तो अपने जीवनमें जैसा परिणाम बनाया उसके अनुकूल कोई गति पा ली। अब दान, शील, उपकार, संयम कुछ सदाचार पालन किया, बाकी क्या लाभ हो सकता है? बहकावेका ज्ञानीपर अप्रभाव - किसीके मरने पर उसका श्राद्ध करनेसे उस मरे हुए जीवको शान्ति मिलेगी ऐसा बहका कर लोगोने अपनी आजीविका बनायी है। साल भर बाद उसी दिन इतने लोगोको खिलावोगे, इतनी इतनी चीजें गंगा युमनाके किनारे बैठे किसी नियत पुरूषको पूज्य मानकर दे दोगे तो इतनी चीजें उस मरे हुए पुरूष के पास पहुंचा देंगें- ऐसा भ्रम डाल देते है। यह सब आजीविकाका साधन है दूसरोका। जो मर चुका है उसके पास कैसे क्या पहुंच जायगा। तुम जो करोगे सो तुम्हारे साथ रहेगा। उन पुरूषो ने जो किया सो उन कुछ विश्राम लेकर अपने आपमें देखो तो सही इन समस्त समागमोसे भिनन कोई तेज स्वंयमें है अथवा नही। सब प्रकट हो जायगा। भोगत्यागकी प्राथमिकता – भैया। यदि शान्तिकी चाह है तो आपको त्यागना पड़ेगा विषयोको। भोगोके त्यागे बिना ज्ञान प्रकाश मिल जाय, ऐसा कभी नही हो सकता। इस कारण जो आत्मस्वरूपके अनुभव के अनुयायी है उन्हे चाहिए कि विषयोको, ठाठबाटोंको, समागमोंको भिन्न, असार, हेय जानकर उनकी औरसे उपेक्षा करे, और एकांत बैठकर अपने 166
SR No.007871
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala Merath
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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