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पुरूष ही सामने मिलते है, सो वे पुरूष इसको कुछ बुरा भी नही कहते। दूसरे की रागभरी चेष्टा को देखकर दूसरे रागी लोग उसकी सराहना ही करते है। तब कैसे इस राग की विपदा से दूर हो?
अन्तः आश्रय का साहस - धर्म का पथ बड़ा कटीला पथ है। जब तक कोई अपने में इतना साहस नही करता कि लो मै तो दुनिया के लिए मरा ही हुआ हूं, अर्थात् मुझे दुनिया को कुछ नही दिखाना है। दस साल आगे मरने को समझलें कि अभी हम दुनिया के लिए मर गए। जो जीवित हूं, वह केवल आत्मकल्याण के लिए शान्ति और संतोष से रहकर इन कर्मो को काटने के लिए जीवित हूं, ऐसा साहस जब तक नही आता तब तक तो सही मायने में यह धर्म का पात्र नही होता। अब अपने को टटोल लो कि हमे किस प्रकार का साहस रखना है, जिन जीवों में मोह पड़ा हुआ है, पुत्र हो, स्त्री हो, कोई हो उनके प्रति उनको विषय बनाकर जो उपयोग विकल्पों में गुथें रहते है भला बतलाओ तो सही कि इन विकल्प जालो से कौन सा आनन्द पाया, कौन सा प्रकाश पाया?
व्यामोह विपत् - व्यामोही प्राणियो के कितना अंधकार बना हुआ है, अन्तर में श्रद्वा यह बैठी है कि यह तो मेरा है, बाकी दुनिया गैर है। भाईचारे के नाते से व्यवस्था करना अन्य बात है। व्यवस्था करना पड़ती है, ठीक है, किन्तु अंतरंग में यह श्रद्वा जम जाय कि मेरे तो ये ही है तीन साड़े तीन लोग, और बाकी सब गैर है, ऐसी बुद्धि में कितना पाप समाया हुआ है, उसे कौन भोगेगा? प्रकट भी दिखता है कि किसी का कुछ कोई दूसरा नही है। देखते भी जाते है, घटनाँए भी घट जाती है, तिस पर भी वासना वही रहती है। एक अहाने में कहते है कि कुत्ता की पूछ को किसी पुँगेरी में अर्थात् पोले बास में जो कि सीधा होता है उसमें पूँछ को रख दो तो पूँछ सीधी तो रहेगी किन्तु जब निकलेगी तो तुरन्त टेढ़ी हो जायगी, ऐसे ही कितनी मोह की तीव्र वासना भरी है अज्ञानी जीवो की। किसी गोष्ठी में या पंचकल्याण विधानो के दृश्यो में, या विद्वानो के भाषणो में या मरघटो में, किसी को जलाने जा रहे है अथवा समुदायो में ये भाव कर लेते है, चर्चा कर लेते है, ज्ञान की और वैराग्य की, पर थोड़ी ही देर बाद जैसे के तैसे ही रह जाते है। बड़ी विपदा है यह मोह की।
निर्मोहता की अमीरी - भैया ! मोह जिसका छूटे वही पुरूष सच्चा अमीर है। कौन पूछने वाला है, किसके लिए तृष्णा बढ़ाई जा रही है? कोई जीवन में अथवा मरण में साथी हो सकता हो तो निहारो जब तक चित्त में विक्षेप है तब तक इस जीव को साता हो ही नही सकती। इसलिए सबसे पहिले योगी को अपना चित्त शान्त रखना चाहिए। एक ज्ञान बढ़ाने का चस्का लगा लीजिए फिर दिन बड़े अच्छे कटेंगे। इतना ज्ञान सीखा अब और आगे समझना है।
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