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उसकी चेष्टा निरखकर कुछ ऐसी कल्पना बनायी कि दुःखी हो गए, तो दुःखी हो जाने पर चित्त में ऐसा हठ होता है कि हम भी इसका कुछ बदला चुकायेगे, लेकिन ऐसे परिणाम का होना यह इसके लिए बहुत बड़ी विपत्ति है ।
अन्तः साहस
दुनिया के जीव जो कुछ करते हो, करे, उनका उसी प्रकार का अशुभ कर्म का उदय है कि थोड़ी बुद्धि है, थोड़ी योग्यता है, उसके अनुकूल उन्होने अपनी प्रवृत्ति की, उसको देखकर यदि हम भी चलित हो जायें अर्थात् क्षमाभाव से, सत्य श्रद्वा से, आत्मकल्याण की दृष्टि से हम भी चिग जाये तो हमने कौनसा अपूर्व काम किया? इससे यह बड़ी साधना है, बड़ा ज्ञानबल है कि इतनी हिम्मत भीतर में रहे कि लोग जो चेष्टा करे सो करते जायें पर हम तो अपने आपके सत्य विचार सत्य कर्तव्य में ही रत रहेगे। हाँ कोई आजीविका पर धक्का लगे, अथवा आत्महित मे कोई बाधा आए और उस बाधा को दूर करने के लिए कुछ सामना करना पड़े, उत्तर देना पड़े तो वह बात अलग है, पर जहाँ न हमारी आजीविका पर ही धक्का लग रहा हो और न हमारी धर्मसाधना में कोई आ रही हो, फिर भी किसी प्रतिकूल चलने वाले पर रोष करना अथवा उससे बदला लेने का भाव करना, यह तो हित की बात नही है ।
क्षमा से अन्तःस्वच्छता
भैया ! खुद को तो बहुत स्वच्छ रहना चाहिए क्योंकि बदला देने का परिणाम यदि रहा तो उससे चित्त में शल्य रहा, पापों का बंध बराबर चलता रहा जब तक कि बदला लेने का संस्कार मन में रहा आया हो । लाभ क्या उठा पाया, हानि ही अपनी की, कर्मबधं किया, समय दुरूपोया में गुजारा और फायदा कुछ भी न उठाया । शान्त रहते तो बुद्वि स्वच्छ रहती, पुण्य बंध होता, धर्म में भी गति होती । तब गृहस्थ को कम से कम इतना तो अपना मनोबल बढ़ाना चाहिए कि जिस घटना में आजीविका आदि पर धक्का न लग रहो हो, आत्महित में बाधा न हो रही हो तो ऐसी घटानाओ मे न कुछ क्षोभ लाना है और न कुछ प्रतिक्रिया करने का आशय बनाना है। योगी साधु पुरूष तो किसी भी परिस्थिति में चाहे कोई प्राण भी ले रहा हो तब भी उस घातक पुरूष पर रोष नही करतें है उनके और उत्कृष्ट क्षमा होती है । चित्त में रागद्वेष का क्षोभ न मच सकेल ऐसा अपना ज्ञानबल बढ़ाना, यही आत्मा के हित की बात है ।
कल्पना की व्यर्थ विपदा
भैया! मोटी बात सोचो, इस आत्मा का साथी कौन है? इस आत्मा के साथ जायेगा कौन? मरते हुए लोगो को देखा है, एक धागा भी साभ नही जाता है। खूब बढ़िया ऐसी बडी पहिना दो जिसे उतार भी न सकें या कैसे ही कपड़ो में गूँथकर रख दो, पर जीव जो मर रहा है उसके साथ कुछ भी जा सकता है क्या? मरने वाले मनुष्य की छाती पर नोटो की गठरी रख दो तो भी वह उसमें से कुछ ग्रहण कर सकता है क्या? कितना दयापूण वातावरण है वह । मोही पुरूष कितनी विपत्ति में पड़ा हुआ है, उसे सत्य मार्ग ही नही दीखता । एक राग के अंधकार में बहा जा रहा है और रागी
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