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________________ पुद्गल जब चलने को उद्यत होते है तो अपनी उपादान शक्ति से चलते है। उस समयमें धर्मास्तिकाय निमित्तमात्र है। सिद्विका आधार और उसका निमित्त - भैया उपादान व निमित्तकी स्वंतत्रता के अनेक उदाहरण ले लो। चूल्हे पर ठंडा पानी रखा हुआ है, तो पानी जो गर्म होता है वह आगकी परिणति से नही गर्म होता है, उस पानी मे स्वयं गर्म होने की शक्ति है। वह पानी अपने उपादानसे ही गर्म होता है। हाँ उस सम्बंधमे निमित्त अग्नि अवश्य है, पर आग की परिणति पानीमें आकर पानीको गर्म कर रही हो, ऐसा नही है। जैसे आप सब सुन रहे है, जो बातें हम कह रहे है वे बातें आप सब ज्ञानमें ला रहे है, स्वंय ही अपने अन्तरमें ज्ञान का पुरूषार्थ करके जान रहे है, हम आपमें ज्ञानकी परिणति नही बना सकते है। हाँ उस तरहके ज्ञानके विकासमें ये वचन निमित्त मात्र हो रहे है। प्रत्येक पदार्थ अपने आपके उपादानसे परिणत होता है, बाहापदार्थ निमित्तरूप सहकारी होते है। अयोग्य उपादानमें विवक्षित सिद्विका अभाव - जिसमें परिणमनेकी शक्ति नही है उसमें कितने ही निमित्त जुटे, पर वह परिणमता नही है। जैसे कुरड़ मूंगमे पकनेकी शक्ति नही है तो आप उसे चार घंटे भी गर्म पानीमें पकावें तो भी नही पक सकती। अज्ञानी पुरूष में अभव्यमें, जिसका होनहार अच्छा नही है ऐसे मिथ्यादृष्टियोमें ज्ञान ग्रहण करनेकी योग्यता नही है, अतएव वहाँ कितने ही निमित्त मौजूद हो तो भी वे लाभ नही उठा सकते, क्योकि उपयोग गंदा है। जिन निमित्तोंको पाकर सम्यग्दृष्टि जीव ज्ञानी बन सकता है उन ही निमित्तोको पाकर मिथ्यादृष्अि मोही अज्ञानी जीव दोष ग्रहण करने लगता है। यह सब अपने-अपने उपादानके योग्ताकी बात है। लब्धिके बिना विकासका अवरोध - यदि आत्मामें एक ज्ञान प्राप्त करनेका क्षयोपशम नही है, तत्वज्ञानकी योग्यता नही है उन अभव्य जनोंको सैकड़ो धर्माचार्योके उपदेश भी सुननेको मिलें तो भी वे ज्ञानी नही हो सकते, क्योकि कोई पदार्थ किसी भी अवस्थाको छोड़कर कोई नई अवस्था बनाए तो उसमें उस पदार्थ की क्रिया और गुणोकी विशेषता है, दूसरा तो निमित्त मात्र है। प्रयोग करके देख लो - बगुला पढ़ नही सकता कभी तोतेकी भांति, वह अक्षर नही बोल सकता तो बगुलाको पालकर यदि उसे वर्षों तक भी सिखावो तो क्या वह बोल लेगा? नही बोल सकतां। उसमे उस तरह परिणमनेकी शक्ति ही नही है। तोतेमें बोलने की योग्यता है, चाहे वह न समझ पाये बोलने को भाव, किन्तु उसका मुख उसकी जिहा व चोंच ऐसी है कि कुछ शब्द वह मनुष्योक तरह बोल सकता है। कितने ही लोग तो तोतेको चौपाई तक सिखा देते है। कोई गद्यमें बात सिखा देते हे। वह तोता बोलता रहता है। तो जैसे बगला सैकड़ो प्रयत्न करनेप भी बोल नही सकता है इसी प्रकार अभव्य जीवोके अज्ञानी जीवोके चूँकि तत्वज्ञान उत्पन्न करनेकी योग्यता नही है, इस कारण कितने ही ज्ञानी पुरूषोके उपदेश मिले, कितने ही निमित्त साधन मिलें तो भी वे ज्ञानी नही 149
SR No.007871
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala Merath
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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