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________________ और अपने आपके आत्मा के शोधन का उपयोग चलता है, इससे यह तप भी साधुओ को करने योग्य है। यों ज्ञान ध्यान तपस्या में निरत साधुजनो का उपदेश पाकर यह जीव अपने आप में निर्मलता उत्पन्न करता है, स्वपर का भेदविज्ञान होता है। शान्ति की साधना - शान्ति के लिए लोग अन्य-अन्य बड़ा श्रम करते है। वह श्रम ऐसा श्रम है कि जितना श्रम करते जावो उतना ही फंसते जावो, अशांत होते जावों। जिसके पास किसी समय 100) की भी पूंजी न थी और वह आज लखपति हो गया तो उसकी चर्या को देख लो - क्या शान्ति उसने पा ली है ? बल्कि कुछ अशान्ति में वृद्वि ही मिलेगी। जितना अधिक धन अपने पास है उतनी ही चिन्ता उसकी रक्षा की बढ़ती जाती है। मैं धनी हूं, मै सम्पदावान हूँ, मैं इज्जत वाला हूं - ये सब बातें अज्ञानी जनों के बढ़ती जाती है। तब अशान्ति बढ़ी या शान्ति हुई ? वस्तुतः सम्पदा न अशान्ति करती है और व शान्ति करती है। यह तो अपने- अपने ज्ञान की बात है। भरत चक्रवर्ती 6 खण्ड की विभूति को पाकर अशान्त न रहते थे और दिगम्बर दीक्षा धारण करने के पश्चात् अन्तर्मुहूर्त में ही उनके केवलज्ञान हो गया था। उन्होंने गृहस्थावस्था में बड़ी आत्मभावना की थी। घर में रहते हुए भी वैरागी का दृष्टान्त भरत का ही प्रसिद्ध है। भेदविज्ञान से मोक्ष सौख्य का परिचय - साधु संतो के उपदेश से जो आत्मा और पर का भेदविज्ञान होता है वह आत्मस्वरूप को जानता है और मुक्ति में क्या सुख है, उस सुख को भी पहिचानता है। मुक्ति मायने है छुटकारा मिल जाना। द्रव्यकर्म, शरीर, रागादिक भाव इन सबसे छुटकारा मिलने का नाम है मुक्ति। इनसे छूटे रहने का मेरा स्वभाव है। यह जब तक अनुभव में न आए तब तक वह छुटकारे का क्या उपाय करेगा? यह मैं आत्मा चैतन्यस्वरूप हूं और मुझसे भिन्न ये समस्त जड़ पदार्थ है, वे मेरे कभी नही हो सकते। जब तक यों भेदविज्ञान नही होता तब तक आत्मा की पहिचान भी नही होती। चित्त तो लगा है बाहरी और, आत्मा की सुध कौन ले। और ऐसे प्राणी जो मूढ़ है, बहिर्मुख है, धन के लोलुपी है वे अपनी दृष्टि के अनुसार ही जगत में सबको यों देखेंगे कि सभी मोही है, अधर्मी है। पापी पुरूष ऐसा जानते है कि सभी ऐसा किया करते है क्योकि उनके उपयोग में जो बसा हुआ है उसका ही दर्शन होगा। __ शास्त्राभ्यास की महती आवश्यकता - दूसरा उपाय बताया गया है शास्त्राभ्यास का। शास्त्र का अभ्यास भी सिलसिलेवार ठीक ढंग से पढ़े बिना नही हो सकता। लोग घर के काम, दूकान के काम तो कैसा सिलसिले से करते है कपड़े का काम अथवा सोना चांदी का काम करेंगे तो उस अलमारी में अच्छी तरह रखेंगे, हर काम तो सिलसिले से करते है पर धर्म का कार्य ठीक ढंग से सिलसिले से नही करते है। शास्त्र पढ़ना हो तो कोई भी शास्त्र उठा लिए और उसकी दो लकीर देख ली, देखकर धर दिया और चल दिया। अगर चार - छ: महिलाओ के शास्त्र का नियम हो तो वे सब एक शास्त्र उठा लेंगी जिसमें खुले 141
SR No.007871
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala Merath
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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