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________________ अपने आपको जो लोग यह समझते है कि मैं अमुक लाल आत्मा की प्रभुस्वरूपता अमुकचंद हूँ, ऐसे बाल बच्चे वाला हूँ, अमुक का अमुक हूं, ऐसी पोजीशन का हूं उनका संसार बढ़ता रहता है। अरे इस ही आत्मा में जो हम आप हैं वह शक्ति है कि अरहंत और सिद्व बन सकते है । तो जैसी पवित्र परिणति इसकी हो सकती है उस रूप मं हम ध्यान किया करें तो उत्तम परिणति हो सकती है। मैं अरंहत हूँ, वर्तमान परिणति को निरखकर न बोलो, किन्तु अपने स्वभाव पर बल देकर जिस स्वभाव का पूर्ण विकास अरहंत कहलाता है उस स्वभाव पर बल देकर अनुभव करिये मै अरहत हूं अरहंत कुछ चेतन जाति को छोड़कर अन्य जाति में नही होता है। यह ही मैं चेतन हूं और अरहंत जों हुए हैं वे भी ऐसे ही चेतन है, केवल दृष्टि के फर्क से यह इतना बड़ा फर्क हो गया। सारभूत यह है कि जिसे धर्म करना हो तो पहिले यह समझना होगा कि मैं न मनुष्य हूं न स्त्री हूँ, न इस शरीरवाला हूँ किन्तु एक ज्ञानस्वरूप आत्मा हूं, ऐसी समझ के बिना धर्म हो ही नही सकता। — अपनी तीन जिज्ञासाये - भैया! एक सीधी सी बात है कि जिसका मन मोह में फंसा है उसे अन्तर्ज्ञान की यह बात समझ में नही आ सकती है। वह इस बात पर ध्यान नही दे सकता है, और जिसे व्यामोह नही है, सुनते ही के साथ उसकी समझ में आ जायगा कि यह ठीक मार्ग है। ऐसे इस आत्मा के ज्ञान को बढाये, उसकी ही दृष्टि रखें और उसकी ही दृष्टि के प्रसाद से पाप आदिक अवस्थावो को त्याग व्रत आदिक तपश्चरण आदिक धर्म की क्रियावो में लग जाय तो ऐसी निर्मलता पैदा होती है कि यह आत्मा भगवान हो जाता है। हम क्या है? हमें क्या बनना है और उसके लिये हमें क्या करना चाहिए, इन तीनो बातो का सही उत्तर ले लो तब धर्म आगे बनेगा। हम क्या है सोच लो । हम वह है जो सदा रहता है। जो नष्ट हो वह मै नही हूं। अब यह निर्णय कर लो कि हमें क्या बनना है? हमें बनना है सहज शुद्ध ज्ञानानन्दस्वरूप एतदर्थ में हमें क्या करना चाहिए? कौनसा ऐसा काम है जिसके कर लोने पर फिर काम करने को बाकी न रहे। भला काम तो वही है जिसके कर लेने पर फिर वह पूर्ण हो ही गया। अब आगे कुछ भी करने की जरूरत न रही ऐसा कौनसा काम है? पंचेन्द्रिय के विषयो के साधन जुटाना, यह तो आकुलता को बढ़ाने वाला है। करने योग्य काम तो केवल ज्ञाताद्रष्टा रहने का है। मिथ्या आशय से कर्तव्य में बाधा - दो भाई थे। वे परस्पर में एक दूसरे को चाहने वाले थे। उनमें से बडा भाई एक दिन बाजार से दो अमरूद खरीद लाया । दाहिने हाथमें बड़ा अमरूद था और बायें हाथ में छोटा अमरूद था। सामने से एक उसका लड़का और एक भाई का लड़का आ गया जो दाहिनी और था छोटे भाई का लड़का बाँई ओर था उसका लड़का । तो उसने बड़ा अमरूद अपने लड़के को देने के लिए यों हाथो का क्रास बनाकर अमरूद दिया। छोटे भाई ने इस घटना को देख लिया। उसके हृदय पर इस बात से बड़ा धक्का पहुंचा। वह कहाँ गम खाने वाला था। देखो इतनी छोटी सी बात पर छोटा भाई कहता है बड़े भाई से कि भाई अब हम अलग होना चाहते है, एक में नही रहेंगे। बड़े भाई ने बहुत कहा कि भैया अलग न हो, तुम चाहे हमारी सारी जायदाद ले लो। कहा - 14
SR No.007871
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala Merath
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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