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________________ सामर्थ्य रखता हो और सुगम कार्यो के करने की सामर्थ्य न रखता हो। वह अपने आपमें अपनी शक्ति को खूब समझता है। उसके लिए सभी कार्य दुर्गम अथवा सुगम हो, सरल होते है। महती निधि से अल्पलाभ की अतिसुगमता - जैसे कोई बोझा उठाने में बलशाली है तो वह छोटा बोझा उठाने में कुछ असुविधा नही मानता है, ऐसे ही जिस शुद्ध आत्मा के भाव में भव-भवके बांधे हुए कर्म कालिमा को भी जलाने की सामर्थ्य है, स्वात्मा की प्राप्ति करने की सामर्थ्य है उससे स्वर्ग आदिक सुख प्राप्त हो जायें इसमें कौन सी कठिनाई है? किसान लोग अनाज पैदा करने के लिए खेती करते हैं तो उद्यम तो कर रहे हैं धान और अनाज को पैदा करने का और भुसा उन्हे अनायास ही मिल जाता है। कोई खाली भुसा के लिए खेती करता है क्या? अरे भुस तो स्वयं ही मिल जाता है। तो जिसका जो मुख्य प्रयोजन है वह अपने कार्य में उसी का ही ध्यान रखता है, बाकी सब कुछ तो अनायास ही होता है, इसी तरह जिसके भेदाभ्यास में इतना बल है कि उसकी तपस्या से भव-भव के संचित कर्म क्षणमात्र में ध्वस्त हो जाते है, तो उस तपस्या के प्रसाद से ये संसार के सुख मिल जाना यह तो कुछ दुर्लभ ही नही है। व्रत का लाभ- आत्मीय जो सत्य आनन्द है उसकी प्राप्ति में उत्तम द्रव्य मिलना, उत्तम क्षेत्र, उत्तम काल और उत्तम भाव मिलना, जब ऐसी योग्य सामग्री मिलती है तो उसकी उस शक्ति से मोक्ष रूप महान् कार्य उत्पन्न हो जाता है फिर उससे स्वर्ग मिल जाये तो कौनसा आश्चर्य है, किन्तु अल्प शक्ति वाले व्रत का आचरण करें तो उसे स्वर्ग सुख ही मिल सकता है मोक्ष का आनन्द नही। इससे ज्ञानी पुरूषो को आत्मा की भक्ति, प्रभु की भक्ति करनी चाहिऐ, समस्त धर्म कार्यों में कभी प्रमाद न करना चाहिए और न कभी पापों में परिणति करना चाहिए, क्योकि पाप के कारण नरक आदिके दुःख मिलेंगे औश्र कदाचित् उसके बाद मोक्ष भी प्राप्त होगा, तो होगा पर दुःख भोग-भोगकर पश्चात् मोक्ष की विधि उसे लग सकेगी। और कोई व्रत करता है तो व्रत के आचरण के प्रसाद से लोक सुख के उसे आत्मा की भी प्राप्ति होगी, स्वर्ग भी मिलेगा। तो व्रत करना हमेशा ही लाभदायक है। मन के जीते जीते- भैया! व्रत में कठिनाई कुछ नही है, केवल भाव की बात है। अपने भावो को सम्हाल लें तो काम ठीक बैठता है। मानो जाड़े के दिन है, रात्रि को प्यास न लगती होगी पर जरासी भी कुछ बात हो तो रात को भी प्यास की वेदनासी अनुभव करते और थोडी हिम्मत बनायी तो गर्मी के दिनों में भी रात को पानी की वेदना नही सताती। मन के हारे हार है मनके जीते जीत। जो योगी पुरूष गुरू के उपदेशानुसार आत्मा का ध्यान करते हैं उनके अनन्त शक्तिवाला आनन्द तो उत्पन्न होगा ही, पर स्वर्ग सुख भी बहुत प्राप्त होता है। जिसको उस ही भव से मोक्ष जाना है ऐसा मनुष्य जिस समय आत्मा का अरहंत और सिद्व के रूप से ध्यान करता है उसे इस आत्मध्यान के प्रताप से मोक्ष मिलता है। न हो कोई चरम शरीरी और फिर भी वह अरहंत सिद्ध के रूप से आत्मा का ध्यान करता है उसे भी स्वादिक के तो सुख मिलते ही है। 13
SR No.007871
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala Merath
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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