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ईट कही का रोड़ा। जोड़ा तो बहुत था पर अंत में सब कुछ बिछुड़ गया। क्या किसी ने पूरा कर पाया?
व्यर्थ की चिन्ता - सब व्यर्थ की चिन्ता मचा रक्खी है मोही प्राणियो ने। मुझे इतनी जायदाद मिल जाय, मैं इस ढंग का कार्य बना लूं फिर तो कुछ चिन्ता ही न रहेगी। अरे भाई जब तक पर्याय मूढ़ता है तब तक बेफिक्र हो ही नही सकते। एक फिक्र मिट गई तो उसकी सवाई एक फिक्र और लग जायगी जिसमें उस फिक्र से भी ड्योढ़ी ताकत बनी हुई है। कहाँ तक मिटावोगे ? फिक्र तो तब मिटेगी जब फिक्र की फिक्र छोड़ी जाय। जो होता हो हाने दो। कर भी क्या सकता है कोई इसमें? उदय होगा तो स्वतः ही अनुकूल बुद्धि चलेगी, स्वतः संयोग मिलेगा और वह कार्य बनेगा। कौन करने वाला है किसी दूसरे का कुछ। यह मनुष्य जीवन बाहरी विभूतियों के संचय के लिए नहीं पाया है। अपना उददेश्य ही कर लो। जो उस पर चेलगा अर्थात सत्य मार्ग पर चेलगा उसी को ही फल मिलेगा। धर्म का पालन इसी को ही कहते है।
सपद्वति ज्ञानप्रयोग का अनुरोध - भैया! केवल पूजन स्वाध्याय का सुनना या अन्य प्रकार से धर्म पालन को शौक निभाना इतने मात्र से काम नही चलता किन्तु कुछ अपने में अन्तर लाये, कुछ ज्ञानप्रयोग करे, जो कुछ सुना है, समझा है , जाना है उसको किसी अंश में करके दिखाये। किसे दिखाये ? दूसरे को नही। अपने आपको दिखा दे। जो बात धर्म पालन के लिए बतायी गई है वहाँ धर्म है, केवल रूढ़िवाद मे क्या रखा है। कोई एक सेठ था, रोज शास्त्र सुनने आता था। एक दिन देर में आया तो पंडित जी ने पूछा - सेठ जी आज देर से क्यों आए ? सेठ जी बोले - पंडित जी वह एक जो छोटा मुन्ना है ना, 10 वर्ष का, वह भी हठ करने लगा कि मैं भी शास्त्र सुनने चलूंगा। फिर जब बहुत उसे मनाया, आठ आने पैसे देकर सनीमें का टिकट कटाया, उसे भेजा तब यहाँ आ पाये। पंडित जी बोले - सेठ जी बच्चा भी आ जाता, शास्त्र सुन लेता तो क्या नुकसान था? तो तो सेठ जी कहने लग – पंडित जी! तुम तो बहुंत भोले हो। हम शास्त्र सुनने की विधि जानते है कि शास्त्र सुनने की क्या विधि है। अपने कुर्ता में, चद्दर मे सब धरते जाना फिर चलते समय उन सब कपड़ो को झटककर जाना। यह है सुनने की विधि। तो हम तो जानते है कि शास्त्र कैसे सुना जाता है, पर वह 10 वर्ष का बच्चा जिसे सुनने की विधि भी नही याद है, वह कही शास्त्र सुनने से विधि के खिलाफ हृदय में धारण कर ले और कुछ ज्ञान वैराग्य जगे, घर छोड़ दे तो हम क्या करेगे ? तो भाई यह शास्त्र सुनने की विधि नही है।
कार्य की प्रयोगसाध्यता - भैया! जो करना हो अपनी कुछ शान्ति का काम तो अन्तर में कुछ प्रयोग करना होगा। बातों से तो काम नही चलता। कोई मनुष्य प्यासा हो और वह पानी-पानी की 108 बार जाप जप ले तो कही पानी तो पेट में न आ जायगा,
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