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तब बिना भोगा ग्रहणमें आया। यों अनन्त बार फिर भोगा हुआ ग्रहण करे तो फिर बिना भोगा हुआ ग्रहणमें आया। इस तरह बिना भोगा भी अनंन्त बार ग्रहणमें आ चुके, तब भोगा और बिना भोगा मिलकर ग्रहणमें आया। इस तरह बिना भोगा भी अनंत बार ग्रहणमें आ चुकें, तब भोगा और बिना भोगा मिलकर ग्रहणमें आये, इस तरह गृहीत अगृहीत मिश्रका कई पद्वतियोमें ग्रहण बता करके द्रव्यपरिवर्तनकी बात है। उससे सिर्फ यह जानना है कि इस जीवने अब तक संसार के सभी पुद्गलोको अनेक बार भोगा है और भोगकर छोड़ा है।
तृष्णाका आतंक – भैया ! अनन्तो बारका भोगा हुआ व छोड़ा हुआ यह वैभव फिर मिला है तो इसमें तृष्णा फिर बन गयी। भव भव में तृष्णाएँ की, वे तृष्णाएँ पुरानी हुई, जीर्ण हुई, मिट गयी, फिर नवीन तृष्णाएँ बना ली। जैसे पहिले हम आप सभी बच्चे थे, फिर जवान हुए, अब बूढ़े हो रहे है। तो बचपनमें जो दिल होता है, जिस प्रकारकी खुशी होती है वह अब कहाँ है? बचपन में पहिले कुछ विद्या सीखी, स्वर व्यञजन सीखा तो खुश हो गये, समझा कि बहुत कुछ सीख लिया, खूब पढ़ लिया। अब देखो जवानी व्यतीत हो गयी, बूढे हो गए, मरण हो जाएगा। फिर कदाचित् मनुष्य हो गये तो बच्चे होंगे फिर वही स्वर व्यञजन नई चीज मान लेंगे और फिर वही नई उत्सुकता होगी। अच्छा दूसरे भवकी बात छोड़ो, कल भी कुछ आपने खाया था, वही दाल, रोटी, साग, छककर खाया था, तृप्त हुए थे, आज 10 बजे फिर वही दाल, रोटी साक खाया होगा तो कुछ नई सी मालूम हुई होगी। कितने ही बार भोग भोगता जाय यह व्यामोही फिर भी बीच -बीज में जो भोग मिलें, साधन मिले, वैभव मिले तो वे भोग नये-नयें लगतें है।
व्यर्थका अभिमान - भैया! अनेक बार सेठ हो चुके होंगे, आज लाख या हजारका वैभव मिल गया तो वही नया मान लिया। मैने बहुत चीज पायी। और इससे करोड़ो गुणा वैभव पाया और उसे छोड़ दिया। अनेक बार राज्यपद पाया होगा, बड़ी हकमत की होगी पर आज कुछ लोगोमे नेतागिरी मिली यप्त हुए थे, आज 10 बजे फिर वही दाल, रोटी साक खाया होगा तो कुछ नई सी मालूम हुई होगी। कितने ही बार भोग भोगता जाय यह व्यामोही फिर भी बीच -बीज में जो भोग मिलें, साधन मिले, वैभव मिले तो वे भोग नये-नये लगतें है।
व्यर्थका अभिमान - भैया! अनेक बार सेठ हो चुके होंगे, आज लाख या हजारका वैभव मिल गया तो वही नया मान लिया। मैने बहुत चीज पायी। और इससे करोड़ो गुणा वैभव पाया और उसे छोड़ दिया। अनेक बार राज्यपद पाया होगा, बड़ी हुकूमत की होगी पर आज कुछ लोगोमे नेतागिरी मिली या कुछ हुकूमत मिल जाय, थोड़े राज्यमें पैठ हो जाय तो यह बड़ा अभिमान करता है, फूला नही समाता। मैं अब यह हो गया हूं, अरे इससे बढ़-बढ़कर बातें हुई उसके आगे आज मिला क्या है? परन्तु यह मोही कुछ भी मिले उसे ही नई चीज मानता है। क्या प्रकृति है इस जीवकी कि इन भोगोको अनेक बार भोगा है
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